Book Title: Shukl Jain Mahabharat 02
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 514
________________ $$$安安安安安安安安安安安 - कर्ण का दान 年晚安染法染姿***邱晓华 , । रात्रि का प्रथम पहर था। भोजन करके सैनिक विश्राम कर रहे थे। परन्तु अर्जुन के नेत्रों से तो निद्रा सठी हुई थी। वह कभी शैया पर करवटे बंदलता, तो कभी व्याकुल होकर उठ पडता और शिविर मे इधर से उधर टहलने लमा। पर उसे शाति किसी भी प्रकार न मिलती। कोई समस्या उसके मस्तिष्क को मथे डाल रही थी। जब किसी भी प्रकार चैन न आया तो वह अपने शिविर से निकल कर श्री कृष्ण के शिविर की ओर चला। उसने देखा कि मधुसूदन भी शैया पर पडे करवटे वदल रहे है. जसे शैया पर शूल विछे हो और उनके कारण उन्हे चैन न पडती हो । श्री कृष्ण की व्याकुलता देखकर वह सोचने लगा-"मधुसूदन ! तो स्वय ही चिन्ताकुल है। इस समय 'उनसे कुछ पूछना ठोक न होगा, जो स्वयं व्याकुल है वह दूसरे की व्याकुलता कैसे दूर कर सकेगा?- नही, इस समय उनसे कुछ कहना ठीक नहीं।"-यह सोचकर वह जैसे आया था वैसे ही उल्टे पैरो लौटने लगा। उसी समय श्री कृष्ण ने पुकार कर कहा-"अर्जुन । क्यों आये थे और क्यो वापिस चल दिए ?" अर्जुन के पर रुक गए, जैसे किसी ने श्रखलाएं डाल दी हो। वोला-"महाराज ! एक समस्या का समाधान कराने पाया था। पर यहां देखा कि आप स्वय व्याकुल है। कोई जटिल समस्या प्रापक हृदय से शूल की भाति खटक रही है। फिर एक व्याकुल दूसरे को

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