Book Title: Shukl Jain Mahabharat 02
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 615
________________ गांधारी की फटकार ६०५ स्थान पर एक लोहे की प्रतिमा अन्धे वृतराष्ट्र के सामने खडी करदी, श्री कृष्ण का भय सही सावित हुआ। क्योकि पहले तो उन्होने उस प्रतिमा से स्नेह प्रगट किया । परन्तु तभी उन्हे अपने वेटो की याद आ गई और उन्होने प्रतिमा को इतने जोर से भीचा कि प्रतिमा चूर चूर हो गई। परन्तु प्रतिमा के चूर हो जाने के उपरान्त धृतराष्ट्र को ध्यान पाया कि मैंने यह क्या कर डाला . वे दुखित हो कर बोले--"हाय मैंने यह क्या कर डाला, क्रोध मे पाकर भीमसेन की हत्या करदो।" इतना कह कर वे विलाप करने लगे । तभी श्री कृष्ण वोले-"महाराज । श्राप चिन्तित न हो । भीम सेन सकुशल है।" "तो फिर यह कौन था, जो मेरे हाथो चूर हो गया।" "वह थो लोहे की प्रतिमा।" । धृतराष्ट्र को क्रोध तो आया, पर उसे पीकर बोले-"श्री कृष्ण ! तुम ने बहुत अच्छा किया कि मुझे एक पाप से बचा लिया।" फिर तो धृतराष्ट्र ने भीम सेन को अपने पास बुलाकर बड़ा स्नेह दर्शाया। इसी प्रकार अर्जुन, नकुल पार सहदेव को भी छाती से लगा कर प्यार किया। उन्ह पाशार्वाद दिया और सुख पूर्वक राज्य काज करने को कहा । ___ गाघारी एक ओर खडी विलाप कर रही थी । विदुर जी ने जाकर उसे ढाढस बन्धाया । और इसके लिए उन्होने प्रात्मा के सम्बन्ध मे ज्ञातपूर्ण उपदेश दिया। फिर पाण्डव उसके पास गए और पर छकर प्रगाम किया। जव श्री कृष्ण पहचे तो प्रणाम करके बोले"सती गाधारा ! अब विलाप बन्द करो जाने वाले अव वापिस तो पाते नही । अब तो पाण्डवों को ही अपना बेटा समझो। तुम्हारे पुत्र यदि मेरो बात मान लेते और पाण्डवो से सन्धि कर लेते तो आज उनकी यह गति नही होतो और न आपको यह दिन देखना पड़ता ठोक है अभिमान विखण्डे का कारण बनता है। जो समस्याए शाति से सूलझ सकतो है वही हिंसा से विकट रूप धारण कर लेतो है। तुम जसो सती. जो धर्म के मर्म को समझनो है, मृत व्यक्तियों के लिए आंसू बहाये, यह अच्छा नहीं लगता। सन्तोष करो।" गांधारी के हृदय मे क्रोध का दावा नल धधक उठा । उसने

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