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: सांतवां दिन
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के बोर भिन्न भिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्रों को लेकर एक दूसरे और टूट पडे। तलवारो से तलवारें टकराने लगी, धनुषों की टकारे विजली टूटने की ध्वनि की भाति सूनाई देने लगी। भाले भालो से टकरा गए। गज सवार गजसवारो पर, अश्वारोही अश्व सवारो अर, पर्दाति पदातियों पर और रथ सवार रथ सवारो पर टूट पड ।
थों की घर घराहट से दिशाए गूजने लगी। वीर क्षत्राणियों के सपूत वीरांगनाओ का सुहाग लूटने लगे और कितनी ही जवानियों चाणों से निकलती लपटो मे ध्वस्त होने लगे। रात्रि भर जो भाईयो की भांति रहे अब वे एक दूसरे के प्राणो के ग्राहक बन गए।
सामने से भीष्म जी अपने धनुष की टकार करते, योद्धाओ' को मौत की नीद सुलाते पाण्डव सेना की ओर बढ़े। यह देख घृष्ट द्युम्न, आदि महारथी भी भैख नाद करते हुए भीष्म जी से टक्कर लेने दोड़े। जो हाथ प्रणाम के लिए उठा करते थे, वे वाणों के द्वारा भीष्म जी के प्राण हरने के लिए बड़े वेग से चलने लगे। फिर तो दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध छिड़ गया।
भीष्म जी का मुख मण्डल क्रोध तथा तेज के मारे तप रहा श्या और जैसे पूर्ण यौवन पर पाये तपते सूर्य की ओर देख सकता काठन हो जाता है उसी प्रकार भीष्म जी की ओर देख सकना कठिन हो रहा था। भीष्म जी के बाणो के प्रहार से सोमक, सृज्जय, पांचाल राजाओं को मार गिराने लगे, पर वे भी प्राणो का मोह त्यागकर भीष्म जी पर टूट पडे। उन के अग रक्षक, सहयोगी भार साथी योद्धा भी भीष्म जी पर प्रहार करने लगे। परन्तु भीष्म जाके बाणों की मार से कितने ही अश्वारोहियो के सिर कट कट कर धरा पर लुढ़कने लगे, कितने, ही पहाड़ो के समान उन्नत हाथी पाराशायी हो गए। कितने ही रथ योद्धा हीन होकर रह गए। उस कामय यदि कोई. था जो निर्भय होकर भीम जी के सामने टिका भाया तो वह-शा भीमसेन जो पूरे वेग से भीष्म जी से टक्कर ले
पाउन के प्रहार को रोकता और स्वयं प्रहार भी कर
समय भी हो गएलगे, कितने ही अश्वारोहियाग। परन्तु भागी
भीमसेन के प्रहारों से अन्त में भीम जी भी तंग आ गए इस दुर्योधन अपने भाईयो सहित उनको रक्षा के लिए प्रागया।