Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/२३ हनुमान को तो आज हर्ष का पार न था। आज तो उन्होंने साक्षात् भगवान को देखा था, उनके हर्ष की क्या बात करनी ! घर आते ही अपने महान हर्ष की बात उनने अपनी माता से कही -
“अहो माँ ! आज तो मैंने अरहंत परमात्मा को साक्षात् देखा है। अहो, कैसा अद्भुत उनका रूप ! कैसी अद्भुत उनकी शांत मुद्रा ! और कैसा आनन्दकारी उनका उपदेश ! माँ आज तो मेरा जीवन धन्य हो गया।"
माँ बोली- “वाह बेटा ! अरिहंत देव के साक्षात् दर्शन होना तो वास्तव में महाभाग्य की बात है, तथा उनके स्वरूप को जो पहिचाने, उसे तो भेदज्ञान प्रगट हो जाता है।"
हनुमान कहते हैं- “वाह माता ! आप की बात सत्य है। अरिहंत परमात्मा तो सर्वज्ञ हैं, वीतराग हैं; उनके द्रव्य में, गुण में, पर्याय में सर्वत्र चैतन्य भाव ही है, उनमें राग का तो कोई अंश भी नहीं है अर्थात् उनको पहिचानते ही आत्मा का राग रहित सर्वज्ञ-स्वभाव पहिचान में आ जाता है - ऐसी पहिचान का नाम ही सम्यग्दर्शन है।
कहा भी है - जो जानता अरिहन्त को, चेतनमयी शुद्धभाव से। वह जानता निज आत्मा, समकित ग्रहे आनन्द से ।
हे माता, अनुभवगम्य हुई इस बात को श्री प्रभु की वाणी में सुनते ही कोई महान प्रसन्नता होती है।"
माता अंजना भी पुत्र का हर्ष देखकर आनन्दित हुई और बोली
वाह बेटा ! सर्वज्ञ भगवान के प्रति तेरी परिणति ऐसा बहुमान का भाव देखकर मुझे बहुत आनन्द होता है। भगवान की वाणी में तूने और क्या सुना, वह तो कह ?