Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 73
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/७१ रावण और राम-लक्ष्मण के बीच होने वाले महायुद्ध में हनुमान ने बड़ा पराक्रम करके राक्षसवंशी अनेक राजाओं को हराया। देखो, जीव के परिणामों की विचित्रता ! जिस हनुमान ने पहले युद्ध में विजय दिलाने के लिए मदद करके रावण को बचाया था, वही हनुमान अभी रावण से स्वयं लड़ रहा है। लड़ाई में रावण की शक्ति के प्रहार से लक्ष्मण एकदम मूर्छित हो गये....तब हनुमान लंका से अयोध्या आये और विशल्या कुंवरी को विमान में बैठाकर लंका ले आये। विशल्या के निकट पहुँचते ही लक्ष्मण के शरीर में चेतना आने लगी, रावण द्वारा मारी हुई शक्ति दूर हो गई। यही विशल्या बाद में लक्ष्मण की पटरानी बनी। रावण के महल में शांतिनाथ भगवान का जिनालय था। उसकी शोभा अद्भुत थी। अपने भाई तथा पुत्र पकड़े गये हैं और लक्ष्मण अच्छा हो गया है - यह जानकर रावण को युद्ध में अपनी विजय के विषय में चिंता हो गई; इससे वह शांतिनाथ भगवान के मंदिर में बैठकर बहुरूपिणी विद्या साधने लगा। फागुन मास की अष्टाह्निका आई; रावण की आज्ञा से लंका के लोगों ने इन महान दिनों में सिद्धचक्र मंडल पूजन की तथा आठ दिन आरम्भ छोड़कर युद्ध बंद रखा। सभी व्रत-उपवास तथा जिन-पूजा में तत्पर हुए, राजा रावण विद्या साधने के लिये लड़ाई की चिन्ता छोड़कर, धैर्य पूर्वक प्रभु सन्मुख अद्भुत पूजा करने लगे। इस समय राम की छावनी में वानरवंशी राजाओं ने विचार किया कि पूजा में उपद्रव करके रावण को क्रोध उत्पन्न करो, जिससे उसे विद्या सिद्ध न हो; क्योंकि क्रोध द्वारा विद्या सिद्ध नहीं होती। तथा अभी लंका जीत लेने का समय है, क्योंकि रावण विद्या साधने बैठा होने से अभी वह लड़ेगा नहीं, परन्तु राम ने ऐसा करने की मनाई कर दी। अरे, रावण जिनमंदिर में विद्या साधने बैठा है, उसको उपद्रव कैसे करना ? ऐसी अन्याय की प्रवृत्ति सज्जनों को शोभा नहीं देती। विद्या साधकर रावण भयानक युद्ध के लिये तैयार हुआ, मंदोदरी

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