Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/४१ ही अपने स्थान पर आकर देखते हैं, जब जानकी दिखाई नहीं दी तो कदाचित् ‘मुझे दृष्टिभ्रम हुआ होगा !' - ऐसा समझकर राम पुनः पुनः आँखों को मलकर चारों ओर नजर डालते हैं, परन्तु सीता वहाँ हो तो दिखे ना ! राम तो हाय सीता !' कहते हुए मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़े। मूर्छा उतरी, तब पुन: चारों ओर ढूँढते-ढूँढते एक जगह जटायु पक्षी को तड़फता देखा, वह भी मरण की तैयारी में था, तुरन्त राम ने सब कुछ भूलकर पहले उसे पंचपरमेष्ठी का नमस्कार मंत्र सुनाया। दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप की आराधना सुनाई तथा अरहंतादि का शरण ग्रहण कराया। सम्यक्त्वसहित श्रावकव्रत का धारक वह पक्षी महान शांतिपूर्वक श्री राम के मुख से धर्म श्रवण करते-करते समाधिमरण करके स्वर्ग में गया और भविष्य में मोक्ष पायेगा। . एक तो सीता का विरह दूसरे जटायु पक्षी का मरण।' – इस प्रकार दुगने शोक के कारण राम एकदम विह्वल हो गये। चारों तरफ वृक्षों तथा पत्तों से पूछने लगे
"हे ऊँचे गिरिराज ! मैं दशरथ राजा का पुत्र राम, तुम से पूछता हूँ कि मेरी प्राण वल्लभा सीता को कहीं तुमने देखा है ?"
कौन जवाब दे ! पश्चात् क्रोध से हाथ में धनुष लेकर टंकार करते हैं, परन्तु किसे मारें ? डर के कारण सिंह, वाघ आदि क्रूर प्राणी भी दूर भाग गये....राम पछताने लगे।
“अरे रे, झूठ सिंहनाद में भ्रमित हो गया और अकेली सीता को छोड़ गया। अरे, कहीं सीता को सिंह-वाघ तो नहीं खा गये ? दूसरी ओर भाई लक्ष्मण भी अभी लड़ाई में है, वह भी जीवित आयेगा या नहीं ? इसका भी संदेह है ! अरे रे ! सारा संसार ही असार तथा संदेह रूप है। संयोगों का क्या भरोसा ! संसार का ऐसा स्वरूप जानते हुए भी मैं सीता के मोह से आकुल-व्याकुल हो रहा हूँ।"
पाठको! ध्यान रखना ऐसे समय में भी श्रीरामचन्द्रजी धर्मात्मा हैं, सम्यग्दृष्टि हैं, मोक्ष को भी साध रहे हैं, उनकी ज्ञानचेतना नष्ट नहीं हुई।