Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 82
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/८० आपको नहीं रोकता । मैं भी थोड़े ही समय बाद इस असार-संसार को छोड़कर मोक्ष को साधूंगा।" इस प्रकार कहकर हनुमान ने अपनी माता की दीक्षा का बड़ा उत्सव किया। सीताजी के समान अंजनादेवी भी अर्जिकापने से शोभ उठीं! धन्य दोनों सखी ! हनुमान की मेरुयात्रा कर्णकुण्डल अथवा श्रीपुर नगर में पवनपुत्र राजा हनुमान आनंद से राज्य करते हैं; वहाँ उनकी ‘सदन निवासी तदपि उदासी' - ऐसी दशा वर्त रही है।माता अंजना की दीक्षा के बाद हनुमान का चित्त संसार में कहीं नहीं लगता । गगन-गामित्व वगैरह अनेक विद्यायें, महान ऋद्धियाँ, विमान, सुन्दर बाग-बगीचे, महल, राज्य-परिवार - इन सबके मध्य रहने पर भी उनकी चेतना अपने इष्ट ध्येय को कभी भी नहीं चकती। JAIN MIMIT AST वसंत ऋतु आई....जैसे मुनिराज के अन्तर में रत्नत्रय का बगीचा खिल उठता है, वैसे ही बाग-बगीचे फल-फूलों से खिल उठे। जब अन्य

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