Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/८८ में लीन मुनिराज हनुमान तो उस समय शुक्लध्यान के अहिंसा चक्र द्वारा सर्व कर्मों का क्षय करके ज्ञानानन्द स्वभाव को साध रहे थे। केवलज्ञान होने पर वे विहार करते हुए मांगी-तुंगी पधारे और वहाँ के तुंगीभद्र गिरिशिखर से मोक्षदशा प्रगट करके सिद्धपद प्राप्त किया, अभी भी वह मुक्तात्मा अपने परम ज्ञान-आनंद सहित बराबर तुंगीभद्र के ऊपर समश्रेणि में, लोकाग्र में, सिद्धालय में, अनंत सिद्ध भगवंतों के साथ विराज रहे हैं, उनको हमारा नमस्कार हो। AmIRA PRATPUR जिनदर्शन का महात्म्य “अरे, इस जगत में लक्ष्मी के मोह को धिक्कार है। - (पृष्ठ २५) हे जीवो! तुम लक्ष्मी पर गर्व मत करो, लक्ष्मी को प्राप्त कर जिनदेव की भक्ति में तत्पर रहो। (पृष्ठ ३८) . “हे जीव ! तू देव-गुरु-धर्म की विराधना कभी मत करना । सदा बहुमान पूर्वक देव-गुरु-धर्म की आराधना करना। (पृष्ठ ३८) _ “देखो ! जिनदर्शन की महिमा ! जिसके प्रताप से पूर्व के | पापकर्मों का भी नाश हो जाता है। (पृष्ठ ५१) ... - दर्शन कथा से साभार

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92