Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/३५ श्री राम का वनगमन देखकर प्रजाजनों तथा अनेक राजा शोकमग्न हो गये। बहुत से राजा संसार की ऐसी स्थिति देखकर वैराग्य प्राप्त कर संसार छोड़कर मुनि हो गये। अब अयोध्या नगरी में भरत को या प्रजाजनों
को अच्छा नहीं लगता था । दशरथ राजा भी थोड़े दिन बाद दीक्षा लेकर मुनि हो गये और एकलविहारी होकर विचरते हुए केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष पधारे।
अहो, मुनि बनने की भावना वाले भरत परमविरक्तचित्त से अयोध्या का राज्य संभालने लगे, मानो दूसरा भरत चक्रवर्ती ही हो ! और 'भरतजी घर में वैरागी' - इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए अन्दर से उदास होने पर भी प्रजा का पुत्रवत् पालन करने लगे। राम, सीता एवं लक्ष्मण अयोध्या छोड़कर (वन) विदेश चले गये।
. अहो ! जो राजकुमार भरत निश्चिंत होकर पिता से भी पहले संसार छोड़कर मुनि बनने के लिए महल के बाहर निकल गया हो, उसे फिर से राज्य संभालना पड़े; उसकी अन्तरंग दशा कैसी होगी ? एक ओर राग से सर्वथा अलिप्त ज्ञानचेतना का राज्य और दूसरी ओर लौकिक महान राज्य का कार्य भार ! कैसी विचित्रदशा है ज्ञानी की ! एक ओर मोक्षोन्मुख की ज्ञानचेतना परिणम रही है और दूसरी ओर संसार का रागभाव भी काम कर रहा है। वाह रे वाह ! ज्ञानी की आश्चर्यकारी दशा ! भेदज्ञान के बिना ये समझ में आ जाय – ऐसी नहीं है।
इन सबके बीच धर्मात्मा अपने चैतन्यतत्त्व को कभी भी चूकते नहीं, भूलते नहीं। देखो तो जरा महापुरुषों के जीवन की विचित्रता ! चाहे जैसी प्रतिकूलताओं के बीच भी धर्मात्मा अपने चैतन्यतत्त्व को कभी भी नहीं चूकते अर्थात् उनकी साधना निरन्तर चालू रहती है। यही उनके अन्तरंग जीवन की खूबी है, इसमें ही आराधना का रहस्य है। अस्तु! सदा ऐसी ही आराधना में वर्तते हुए ऐसे महापुरुष श्री हनुमान की यह कथा चल रही है। हनुमान राम के परममित्र हैं। दोनों चरमशरीरी मित्र । वाह ! हनुमान
और राम का मिलाप किसप्रकार कौन से प्रसंग में हुआ। इस प्रसंग का वर्णन यथास्थान आगे किया जायेगा।