Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 53
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/५१ . तब विद्याधर बोले- “हे लक्ष्मण ! इस जम्बूद्वीप के चारों तरफ लवण समुद्र है, उसके बीच राक्षस द्वीप है, उसके बीच नव योजन ऊँचा और पचास योजन विस्तार वाला त्रिकुटाचल पर्वत है, उसके ऊपर देवपुरी जैसा अत्यंत मनोहर लंका नगर है। उसका राजा रावण महा बलवान है। विभीषण उसका भाई है, वह भी महाबलवान है; यद्यपि धर्मात्मा है, जिनधर्म का भक्त है। रावण का भाई कुंभकर्ण और पुत्र इन्द्रजीत भी महा बलवान हैं और श्री राम के समान चरम शरीरी हैं। हे राम ! ऐसे बलवान रावण से युद्ध में जीतना अशक्य है; इसलिए ये बात तो करना नहीं। आप तो सीता के समान दूसरी अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह कर लेंवे, परन्तु सीता को भूल जावें।" . तब राम कहते हैं - "अरे, दूसरी सभी बातें छोड़ो ! सीता बिना मुझे दूसरी स्त्रियों से प्रयोजन नहीं। जो तुम्हें मेरे ऊपर प्रेम है तो किसी भी प्रकार से मेरी सीता का पता मुझे जल्दी बताओ।" राम तो बस सीता की ही हठ ले बैठे। लक्ष्मण ने भी क्रोध पूर्वक कहा – “हे विद्याधरो ! तुम इस दुष्ट रावण से डरो मत ! वह तो चोर है। वह बलवान होता तो सीता को चोरी-चोरी क्यों ले जाता ? वह तो कायर है, उसमें शूरवीरता कैसी ? बस ! सीता का पता मिलते ही अब सीता मिल गई ही समझो। अब जल्दी लंका पहुँचने का उपाय करो।" राम-लक्ष्मण का पराक्रम देखकर सुग्रीव का मंत्री जांबुनद ने विचार किया कि कदाचित् यह लक्ष्मण ही रावण को मारने वाला वासुदेव हो ! अतः उसने राम से कहा – “हे स्वामी ! एक बार रावण ने नमस्कार करके अनंतवीर्य केवली से पूछा था कि मेरा मरण किससे होगा ? तब प्रभु की वाणी में ऐसा आया था कि जो जीव कोटिशिला को उठायेगा, उसके हाथ तेरी मृत्यु होगी।" ये बात सुनते ही लक्ष्मण ने कहा – “कहाँ है वह कोटिशिला ? चलो, मैं उसे उठाता हूँ!" विद्याधरों के विमान में बैठकर सभी कोटिशिला (निर्वाणशिला) के पास आये। इस पावन शिला पर से अनेक जीव सिद्ध हुए हैं' – ऐसा स्मरण करके लक्ष्मण ने उन सिद्ध भगवंतों को नमस्कार

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