Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 88
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/८६ वाह रे वाह ! जिनशासन का वीतरागी रहस्य जानने वाले राजा हनुमान तो आभूषण उतारकर मुनि होने चले। रानियाँ भी हनुमान के उपदेश से प्रतिबोध पाकर खेद छोड़कर दीक्षा लेने को तैयार हुईं। हजारों विद्याधर भी वैराग्य पाकर हनुमान के साथ ही दीक्षा लेने को तैयार हुए। सिद्धालय में जिस मार्ग से अनन्त जिनवरेन्द्र मोक्ष पधारे, उसी मार्ग पर जाने के लिए सभी उद्यमी हुए। वाह रे वाह ! धन्य वह प्रसंग !! निकट में ही चारण ऋद्धिधारी मुनिवरों का संघ विराजमान था। मोक्षमार्ग को साधनेवाली मुनिराजों की भव्य मंडली आत्मध्यान में मग्न बैठी थी। वाह ! मोक्ष के साधक मुमुक्षुओं की मंडली देखकर हनुमान के आनन्द का पार न रहा। मोक्ष-मंडली में मिल जाने के लिए महा विनय से उनको वंदन करके हनुमान ने प्रार्थना की - "हे प्रभो ! मेरा चित्त इस संसार से सर्वथा विरक्त हो गया है और मैं शुद्ध आत्मतत्त्व की सिद्धि के लिये जिन-दीक्षा लेना चाहता हूँ; अतः आप कृपा करके मुझे पारमेश्वरी दीक्षा दीजिए !

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