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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण (क) परिगृहीता देवियाँ
सौधर्म देवलोक में आठ परिगृहीता देवियाँ हैं। इन्हें ही इन्द्राणियाँ और अग्रमहिषियाँ कहते हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं - 1. पद्मा
5. अमला 2. शिवा
6. अप्सरा 3. शची।16
7. नवमिका 4. अन्जू
. 8. रोहिणी117 इनकी जघन्य आयु एक पल्योपम और उत्कृष्ट सात पल्योपम की है। इन अग्रमहिषियों या इन्द्रानियों का 16 हजार देवियों का परिवार होता है।।18
(ख) अपरिगृहीता देवियाँ
जो देवियाँ बिना पति के होती हैं, इनकी वृत्ति गणिका जैसी होती है। इनकी जघन्य आयु एक पल्योपम की और उत्कृष्ट आयु 50 पल्योपम की होती है। इन देवियों में 6 लाख विमान होते हैं।119
भोग में प्रवृत्ति
सौधर्म देवलोक के देवों में भोग की प्रवृत्ति भी मानव के काम-भोगों की तरह होती है अर्थात् देवता भी मनुष्य के समान काम-भोगों का सेवन करते हैं। वे पहले देवलोक के देवों के भोग में आती हैं।120
आदिपुराण में सौधर्म देव का स्वरूप क्या है, उसकी क्या वैशिष्ट्य है इत्यादि रूप से वर्णत तो नहीं मिलता, परन्तु इतना अवश्य कहा गया है कि इस स्वर्ग की प्राप्ति सम्यग्ज्ञान से ही हो सकती है। 21
2. ईशान देवलोक
सौधर्म देवलोक की समश्रेणी में दूसरा ईशान देवलोक है। इस स्वर्ग का इन्द्र ईशान होने पर इस कल्प का नाम ईशान कल्प पड़ा। इस लोक का आकार अर्धचन्द्र के समान है। सौधर्म और ईशान दोनों देवलोकों के आकार को मिलाने पर पूर्णचन्द्र का आकार दिखाई देता है।
श्नैश्चर (शनि) के विमान की ध्वजा से एक रज्जू ऊपर 19 रज्जू घनाकार विस्तार में घनोदधि (जमें हुए पानी) के आधार पर, लगड़ाकर जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर दिशा में दूसरा ईशान स्वर्ग है।