Book Title: Jain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Author(s): Supriya Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan

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Page 327
________________ 286 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण 235. जै.सि.को. भा. 3. पृ. 235 236. त.सू. 6.24 237. जै.सि.को. भा. 2. 31-32 238. वही 239. प.पु. 3.112--1573 ह.पु. 37.1-47; आ.पु. 12.84--195 240. आ.पु. 13.4-216; ह.पु. 38.54, तथा 31.15 (वृत्तान्त), प.पु. 3.158-214 241. आ.पु. 17.46-253; ह.पु. 55.100-129 242. आ.पु. 22-23 सर्ग पूर्ण, प.पु. 4.21.52 243. वही, 47.343-354; ह.पु. 65.1-17 244. उत्तरा सू. वृत्ति - अ. 16, श्लो. 327 पृ. 354. 245. जम्बूद्वीप सं. - अधि. 13, गा. 122-130 246. संस्कृत हिन्दी कोष 'आप्टे' पृ. 19 247. ति.प. 4.896-914 248. ति.पं.-4.896-914; जम्बूद्वीप. सं. अधि. 13, गा. 93-114 249. आ.पु. 6.146--150 250. उशन्ति ज्ञानसाम्राज्यं विध्योः फलमथैनयोः। स्वर्गाद्यपि फलं प्राहुरनयोरनुषङ्गजम्।। - आ.पु. 6.151 251. टिप्पणी आ.पु. 7.18 252. त.सू. - (के.मु.) 9.20 (वि.) 253. आ.पु. 20.175 254. त.सू. - (के.मु.) 9.20 (वि.); जै.द.स्व और वि. - (दे.म.) पृ. 212 255. आ.पु. 20.176 256. त.सू. - (के.मु.) 9.20 (वि.) 257. आ.पु. 20.177 258. त.सू. 9.19 (वि.) 259. आ.पु. 20.178 260. त.सू. 9.19 261. जै.द. (न्या.वि. श्री) पृ. 160 262. आ.पु. 20.178; त.सू. 9.19 वि. 263. या.श. (हे.च.) 5.91 264. प्रायश्चित्तादिभेदेन षोदैवाभ्यन्तरं तपः। . आ.पु. 18.69%;

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