Book Title: Jain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Author(s): Supriya Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan

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Page 335
________________ 294 399. जै. सि.को., (भा. 1) पृ. 483 400. जै. सि.को. (भा. 1), पृ. 482 401. नमस्ते विक्रियर्द्धानामष्टधा सिद्धिमीयुषे । 402. आ.पु. 2.71 (टीका) 403. ति.प. 4.1026 404. आ.पु. 2.71 (टीका) 405. जै. सि.को., (भा. 1) 480 406. आ. पु. 2.71 (टीका) 407. वही। आ. पु. 408. ति.प. 4.1028 409. आ.पु. 2.71 (टीका) 410. वही 411. जै. सि.को., (भा. 1) पृ. 480-481 412. जै.सि.को., (भा. 1) पृ. 481 413. आमर्ष क्ष्वेलवाग्वि प्रुङ्जल्लसर्वौषधे नमः । 414. आ.पु. 2.71 (टीका) 415. ति.प. 4.1069.1072 416. आ.पु. 2.71 (टीका) 417. आ. पु. 2.71 (टीका) 418. वही । जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण 419. आ.पु. 2.71 (टीका) 420. ति.प. 4.1073; आ. पु. 2.71 (टीका) 421. ति.प. 4.1074; आ.पु. 2.71 (टीका) 422. ति.प. 4.1075 423. रा. वा. 3, 36, 3.203.30 424. ति.प. 4.1076 425. रस त्याग प्रतिज्ञस्य रससिद्धिरभून्मुनेः । सूते निवृत्तिरिष्टार्थादधिकं हि महत् फलम् ।। 426. नमोऽमृतमधुक्षीर सर्पिरास्त्रविणेऽस्तु ते। 427. आ.पु. 2.72 (टीका); ति.प. 4.1084 428. ति.प. 4.1084; आ. पु. 2.72 (टीका) आ.पु. 2.71 (टीका) आ. पु. 2.71; ति.प., 4.1067 आ. पु. 11.86 आ. पु. 2.72

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