Book Title: Bauddh tatha Jain Dharm Author(s): Mahendranath Sinh Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan Varanasi View full book textPage 7
________________ 400 चनौतीपूर्ण विचार थे । यद्यपि कालान्तर में बौद्धधम इस देश से लप्त हो गया और जनम भी कुछ क्षत्रो तक सकुचित रह गया उनके सिद्धात निस्सदेह सार्वकालिक महत्त्व के हैं। सत्य अहिंसा अपरिग्रह सदाचार और समानता की भावना की प्रासंगिकता असदिग्ध ह । डॉ महद्रनाथ सिंह द्वारा लिखित पुस्तक बौद्ध तथा जनधर्म दोनो का एक तुलनात्मक अध्ययन ह । कहने की आवश्यकता नही कि इन धर्मों का अध्ययन अनेक विद्वानो ने किया है और इन पर एक विशाल साहित्य उपलध है । परन्तु लेखक मुख्यत अपने को धम्मपद और उत्तराध्ययन सूत्र पर केंद्रित कर दोनो धर्मों के मल सिद्धान्तो का गहराई से अध्ययन किया है । इन ग्रथो से पर्याप्त उद्धरण देकर और अन्य स्रोत सामग्री का यथोचित उपयोग कर डा सिंह न पुस्तक को विश्वसनीय और उपयोगी बनाया है। दोनो धर्मों के दार्शनिक सिद्धा तो ओो उनकी आचार सहिताओ की विवेचना बड ही सन्तुलित ढंग से की गयी है । प्राय सभी अध्यायो म उनको समानताओ और असमानताओ को दर्शाया गया है । कम घम अर्हत निर्वाण पाप-पुण्य भावना या अनुप्रक्षा आदि विषयों का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया ह । हम आशा है कि यह पुस्तक भारतीय धर्मों के अध्ययन में विशेष रुचि लेनेवाले और सामा य पाठक दोनो के लिए पयोगी होगी । वाराणसी २ अगस्त १९८९ - हीरालाल सिंह भतपूर्व प्रोफसर एव अध्यक्ष इतिहास विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालयPage Navigation
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