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धीवर्ग: ५] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
१ चित्ताभोगो मनस्कार२श्चर्चा सडया विचारणा ॥ २ ॥ ३ 'विमर्शो भावना चैव वासना च निगद्यते' (४५) ४ अध्याहारस्तर्क ऊहो ५ विचिकित्सा तु संशयः ।
सन्देहद्वापरौ ६ चाथ समौ निर्णयनिश्चयौ ॥ ३ ॥ ७ मिथ्याष्टिनास्तिकता ८ व्यापादो द्रोहचिन्तनम् । ९ समौ सिद्धान्तराद्धान्तौ १० भ्रान्तिर्मिथ्यामतिभ्रंमः॥४॥ ११ संविदागूः प्रतिज्ञानं नियमाश्रवसंश्रवाः ।
, चित्ताभोगः, मनस्कारः ( २ पु ), 'सुखादिमें मनके लगे रहने के २ नाम हैं।
२ चर्चा, सङ्ख्या, विचारणा (३ स्त्री), 'प्रमाणोके द्वारा किसी विषयके विचार करने के ३ नाम हैं॥ __३ [विमर्शः (पु) भावना, वासना (२ स्त्री), 'बीती हुई बात मादिके संस्कार' के ३ नाम हैं ] ।
४ अध्याहारः, तर्कः, ऊहः (३ पु), 'तर्क' के ३ नाम हैं ।
५ विचिकित्सा ( स्त्री ), संशयः, सन्देहः, द्वापरः (३ पु), 'सन्देह के ४ नाम हैं ।
६ निर्णयः, निश्चयः (२ पु), 'निश्चय के २ नाम हैं ॥
७ मिथ्यादृष्टिः, नास्तिकता ( २ खी), 'नास्तिकपना' के २ नाम हैं। ('ईश्वर या परलोक नहीं हैं, ऐसे ज्ञानको 'नास्तिकपना' कहते हैं)॥
८ व्यापादः (पु), द्रोहचिन्तनम् (न), 'किसीसे द्रोह करनेका विचार करने के २ नाम हैं ।
९ सिद्धान्तः, राद्धान्तः (२ पु), 'सिद्धान्त' के २ नाम हैं। ('वाद. विवादके द्वारा किसी विषयको निश्चय करने या अपने अटल मतको सिद्धान्त' कहते हैं)॥
१. भ्रान्तिः, मिथ्यामतिः ( २ स्त्री), भ्रमः (पु), 'भ्रम' के ३ नाम हैं। ('जैसे-शुक्किमें रजतका, रस्सी में सर्पका ज्ञान होना 'भ्रम' है)॥
संवित् (= संविद् ), आगूः (= आगुर् , 'मागू, आगुरो, भागुर!" ऐसे रूप होते हैं। अथवा-मागू, - भागू, 'मागू, भाग्वी, भाग्या' इत्यादि Jain E n ternational For Private & Personal Use Only
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