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४२४ अमरकोषः ।
[ तृतीयकाण्डे१ पद्ये यशसि च श्लोकः २ शरे खड़गेच सायकः ॥ २॥ ३ जम्बुको कोष्टघरुणी ४ पृथुको चिण्टिाको । ५ 'आलोको दर्शनद्योती ६ भेरीपटहमानको ॥ ३ ॥ ७ उत्सङ्गचिह्नयोरङ्कः ८ कलकोऽङ्कापवादयोः । ६ तक्षको नागवर्धक्यो१०रर्कः स्फटिकसूर्ययोः ।। ४ ११ मारुते वेसि ब्रध्ने पुंलि कः कं शिरोम्बुनोः । १२ स्थात्पुलाकस्तुच्छधान्ये संक्षेपे भक्तसिक्थके।। ५ ।। १३ उलूके करिणः पुच्छमूलोपान्ते च पेचकः । १४ कमण्डलौ च चरकः, श्लोकः' (पु) के पथ, यश, २ अर्थ हैं। २ 'सायक' (पु) के बाण, तलवार, २ अर्थ हैं ॥ ३ 'जम्बुक: (पु) के स्यार, वरुण, २ अर्थ हैं। . 'पृथुकः' (पु) के चितड़ा, बालक, २ अर्थ है ॥ ५ 'आलोक' (पु) के दर्शन ( देखना ), प्रकाश, १ अर्थ हैं ।
'मानक: (+माणकः । पु) के भेरी, नगादा, १ अर्थ हैं। ७ 'अङ्क' (पु) के उत्सा (कोड, गोदी), चित, २ अर्थ हैं।
'कलकु (पु) के चिह लान्छन, र अर्थ है॥ ९ 'तक्षक' (पु), 'तपक' नामका सर्प, बढ़ई २ अर्थ हैं।
१. 'मर्कः' (पु) के स्फटिक मणि, सूर्य, मदार या एकवन ( आक नामक पौधा ), ३ अर्थ है ॥
"'क' (पु) के हवा, ब्रह्मा, सूर्य, ३ अर्थ; 'कम्' (न ) के शिर, पानी, १ अर्थ हैं।
१२ 'पुलाकर (पु)के तीनो (नीवार ) धान या धानकी भूसी, संक्षेप, बा (भात) का अवयव, . अर्थ हैं।
'पेचक (पु) के उल्लू, हाथीकी पूंछ की पर (मांस-पिण्डविशेष), १ अर्थ हैं।
१४ करक' (पु)के कमण्डलु, बौरी ( मोला), अर्थ हैं। 'भागेको नयोती मेरीपटइमाणको' इति पाठान्तरम् ॥
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