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नानार्थवर्गः३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
४६३. १ मूर्खऽर्भकेऽपि वालः स्था २ ल्लोलञ्चलमतृष्णयोः। ३ 'कुलं गृहेऽपि ४ तासाङ्के कुबेरे चैककुण्डलः (७८) ५ स्त्रोपावावशाला ६ हेलिः सूयें ७ रणे हिलिः ( ७९ ) ८ हालः स्यान्नृपती मधे ६ शकलच्छेदयोदल ( ८०) १० तूलिश्चित्रो रकरणालातूलशय ययोः
(८१) ११ तबुलं व्याकुले शब्दे १२ शाकुली कर्णपाल्यानि' (८२)
इति वान्ता: शब्दाः ।
अथा वान्ताः शब्दाः । १३ दवदावौ वनारण्यवह्नी
, 'बाल' ( + वालः । त्रि) के मूर्ख बालक, कश, नेत्रवाला औषध, हाथी-घोड़े की पूछ के बाल का गुच्छा, ५ अर्थ हैं।
'लोलः' (वि) के चल, चाहनासे युक्त, २ अर्थ हैं ॥ ३ [ 'कुलम्' ( न ) के घर, देह, देश, वंश, परिवार, ५ अर्थ है ] ॥ ४ 'एककुण्डलः' (पु)के बलभद्र, कुबेर, र अर्थ हैं ] ॥ ५ ['हेस्ता' (स्रो) के सीका भाव-विशेष; अवज्ञा, २ अर्थ हैं ] । ६ [ 'हेलि' (पु) के सूर्य, आलिङ्गन, २ अर्थ हैं ] ॥ ७ [ 'हिलिः ' (पु) के लवाई, भाव-सूचन, , अर्थ हैं ] ॥
८ [हालः' (पु) के शालिवाहन ( + सातवाहन ) राजा, १ अर्थ और +'हाला' (स्त्री) का मदिरा, १ अर्थ है ] ॥
९ । 'दलम्' (न) के टुकड़ा, पत्ता, २ अर्थ हैं ] ॥ १० ['तूलिः(स्त्री) के चित्र बनानेकी कूँची, तोसक, २ अर्थ हैं ] ॥
११ ['तुमुलम्' (न) का रण आदिमें जन समूहादि से ठसाठस भए हुआ, १ अर्थ और 'तुमुलः' (पु) का बहेडेका पेड़, १ अर्थ है ] ॥ ' १२ ['शष्कुली' (स्त्री) के कर्णपालो, (कानका पर्दा), पूड़ी, २ अर्थ हैं] ॥
इति लान्ताः शब्दाः।
अथ वान्ताः शब्दाः। १३ 'दवः, दाव:' (पु) के वन, दावानल (कदियोंकी रगरसे सस्पस हुई जङ्गलकी आग), २ अर्थ हैं ।
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