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ब्रह्मवर्गः ७] मणिप्रभाध्याख्यासहितः। १ पारम्पर्योपदेशे स्यादेतिमितिहाव्ययम् ॥ १२ ॥ २ उपमा शानमाधं स्यात् ३ ज्ञात्वारम्भ उपक्रमः। ४ यज्ञः सोऽज्वरो यागः सततन्तुर्मखः क्रतुः॥१३॥ ५ पाठो होमश्वातिथीनां सपर्या तर्पणं बलिः। ६ पते पञ्च महायशा ब्रह्मयज्ञादिनामकाः ॥१५॥
। ऐतिह्यम् (न), इतिह (अन्य ), 'परम्परागत उपदेश' के । नाम हैं।
२ उपज्ञा (स्त्री), 'गुरूपदेशके विना उत्पन्न सर्वप्रथम शान' का १ नाम है। ('जैसे-वाल्मीकिकी उपज्ञा 'रामायण' है और पणिनि की उपज्ञा 'अष्टाध्यायी सूत्रपाठ' है')॥
३ उपक्रमः (पु), 'गुरु आदिसे ज्ञान प्राप्तकर आरम्भ करने का नाम है॥
४ यज्ञः, सवः, अध्वरः, यागः, सप्ततन्तुः, मखः, क्रतुः (पु), 'यज्ञ' के ७ नाम हैं।
५ पाठः (पु), 'वेदादिपाठ करने'को 'ब्रह्मयः ' (पु) होमः (पु), 'हवन करने'को 'देवयशः' (पु); अतिथीनां सपर्या, (सी), 'भक्ष, जलपान, शययादि देकर अतिथियों के सत्कार करने' को 'नृयक्षः' (पु); तर्पणम् (न), 'अन्न, जल, पिण्डदान, श्राद्ध, आदिसे पितरों को सन्तुष्ट करने'को 'पित्या ' (पु); बलिः (पु), 'बलि वैश्वदेव अर्थात् काकादिको वलि देने या बलिदान करने को 'भूतयः ' (पु), कहते हैं ।
ये (ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, अतिथियज्ञ, पितृयज्ञ और भूतयज्ञ)५ महायज्ञः (पु), अर्थात् "पशमहायज्ञ' हैं ।
१. तदुक्तं मनुना-मध्यापनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तु तर्पणम् ।
होमो देवो मलिमीतो नृषज्ञोऽतिथिपूषनम् ॥ १॥ पढतान्यो महायज्ञान- इति मनुः ॥७०-॥
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