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विनादिसंग्रहवः ५] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
'माणिक्यभाष्यसिन्दूरवीरचीवरपिलरम् ॥ ३१ ॥ लोकायतं हरिताल विश्लस्थालबालिकम् ।
इति नपुंसकलिंगसंग्रहः ।
अथ पुनपुंसकलिंगसंग्रहः । १ पुनपुंसकयोः शेषोऽधचपिण्याककण्टकाः ॥ ३२॥
लोक आदि, जैसे-रघुवंश, कुमारसंभव, नैषधचरित, मादि काम्यादि प्रन्यों में है), माणिक्यम् (रत्न, जवाहिर), माध्यम (जिसमें सूत्र के अनुसार पदोंकी व्याख्या हो और अपने पदकी भी विवेचना की गई हो ऐसा ग्रंथ-विशेष, जैसे-पा० सू० पर पातअलमाष्य, वेदान्तसूत्रपर शाङ्करभाष्य,.....), सिन्दूएम (सिन्दूर ), चीरम् ( कपड़ा), चीवरम् (मुनियों का वन), पिजाम (+ परम । चिरिया आदि पाल नेका पिंजड़ा ), लोकायतम् (तक), हरितालम (हरताल नामका औषध विशेष ), विदलम् (बाँसका बर्तन विशेष ), स्थालम् ( भोजनपान विशेष), बाह्निकम् (बह देशमें होनेवाला, कुङ्कुम । + 'बाहाम्' अर्थात् बह्न देशसे होनेवाला ), ये २५ शब्द नपुंसकलिङ्ग होते हैं ।
इति नपुंसकलिंगसंग्रहः।
अथ पुनपुंसकलिंगसंग्रहः । १ यहाँसे आगे 'स्त्रीपुंषयोः .....' (३१५३७) के पहले 'पुनपुंसकयो। इसका अधिकार होने से इसके मध्यवर्ती ( बीच वाले ) शेष (पूक्तिसे भिन्न ) शब्द 'पुंल्लिंग और नपुंसकलिंग' होते हैं ।
१ अर्धर्चः अर्धर्चम् (ऋचाका आधा ), पिण्याकः पिण्याकम् (तिल की खली), कण्टकः कण्टकम् (काँटा), मोदकः मोदकम् (मिठाई, लड्डू.), तण्डका
१. ... 'पञ्चरम्' इति पाठान्तरम् । २. 'विदल स्थाल बाहाम्' इति पाठान्तरम् । ३. 'भाष्य' लक्षणं पराशरपुराण उक्तं तद्यथा
सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र वाक्यैः सूत्रानुसारिभिः । स्वपदानि च वय॑न्ते भाष्यं भाष्यविदो विदुः॥१॥ इति ।
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