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तानार्थवः ३ मणिप्रभाच्याख्यासहितः ।
- गोत्रं तु यानि च । २ सत्रमाच्छादने यो स्वादाने बनेऽपि च ।। १८१ ।।
अाज विषये काये. उस व्याग्नि वाससि । २ चकं गलेऽ,६क्ष माक्षेऽपि ४ क्षीरसुव ।। १८२ ।। ८ स्वर्णेऽपि भूपिचन्द्रौद्ध द्वारमात्रेऽपिगोपुरम् । १० गुहादम्भौ गह्वरे वे १३ रहाऽन्तिक रबरे ।। १८३ ।।
__ १ गोत्रम्' ( न ) के नाम, गोत्र (वंश, कुल ), संभावनाके योग्य बोध, जङ्गल, क्षेत्र, रास्ता, ६ अर्थ हैं ।
३ 'सत्रम्' (न ) के आच्छादन ( ढाँकना ), यज्ञ, सर्वदा दान करना, जङ्गल, दम्म, ५ अर्थ हैं ॥
३ 'अजिरम्' (न ) के विषय (रूप, रस, गन्ध आदि), शरीर, आँगन (चौक ), हवा, मेढ़क, ५ अर्थ हैं।
४ 'अम्बरम्' (न) के आकाश, कपड़ा, २ अर्थ हैं ।
'चक्रम्' (न) के राज्य, सेना, पहिया, भायुध विशेष, समूह, कुम्भारका चाक, पानीकी भौंरी, ७ अर्थ और 'चक्रः' (पु) का चकवा पक्षी, 1 अर्थ है।
'अक्षरम्' (न) के मोक्ष, परब्रह्म, वर्ण ( क ख ग घ भादि वर्ण, किसी भी भाषाके असर), आकाश, धर्म, तप, मूल कारण, चिचिड़ा (अपामार्ग), ८ अर्थ हैं ।
७ 'क्षीरम्' (न) के पानी, दूध, १ अर्थ हैं ।
८ 'भूरि' (न ) का सोना । अर्थः' 'भूरि.' (पु) के कृष्णजी, शिवजी, ब्रह्मा, ३ अर्थ और 'भूरि' (त्रि) का अधिक (काफी), १ अर्थ तथा 'चन्द्रः" (पु) के सोना, चन्द्रमा, सुन्दर, कबीला (औषध-विशेष), नी, ५ अर्थ हैं ।
२ 'गोपुरम् (न) के द्वारमात्र, नगरका द्वार, मोथा, ३ अर्थ हैं। ३. 'गह्वरम्' (न) के गुफा, दम्भ, निकुञ्ज, गहन, ४ अर्थ ॥ ११ 'उपतरम्' (न) के एकान्त, समीप, १ अर्थ हैं ।
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