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लिङ्गादिसंग्रहवर्गः ५] मणिप्रमाव्याल्यासहितः।
५३६ १ त्रान्तं सलोपधं शिष्टं रात्रं प्राक्सलन्ययान्वितम् । २ पात्राद्यदन्तरेकार्यों द्विगुर्लक्ष्यानुसारतः ॥ २५ ॥ ३ द्वन्द्वैकत्वान्ययीभावी
मिणम् , साधनम् , पचनम्,.....)। 'कर्तृभिन्न ग्रहण करनेसे 'रमणः, मधुसूदनः, मदना,....' नपुंसकलिन नहीं होते हैं।
शेष (पूर्वोत्तसे बचा हुमा अर्थात् अबाधित) ब्रान्त ('' अन्त में हो जिन के वे), स., ल (+न) ३, उपधा' (अन्त के पूर्व) में हो जिनके वे शब्द, संख्यावाचक शब्द पूर्व में जिनके हो ऐसे 'रात्र' शब्द अर्थात् संख्यापूर्वक 'रात्र' शब्दान्त शब्द ४, नपुंसकलिग होते हैं। (क्रमशः उदा०-१ (नान्त) जैसे--वहित्रम्, वस्त्रम, पात्रम्, अमत्रम्, "( सोपध ) जैसे-त्रपुसम, घिसम, अन्धतमसम्, बुसम,.....१३ (लोध) जैसे-कुलम्, मूलम, तूलम्, शूलम,...",। +३ (नोपध) जैसे-भुवनम्, वनम्,..")। * (संख्या-पूर्वक रात्र-शब्दान्त) जसे-पवरात्रम्, त्रिरात्रम्, षड्रात्रम्,....") । 'शिष्ट' ग्रहण करनेसे 'पुत्रः, नृत्रः, हंसः, कंसा, पनसा, कालः, गल: (+जनः, स्येनः, स्वप्नः),........' और 'संख्या' प्रहण करने से 'अर्धरात्र, मध्यरात्रा, पूर्वरात्रः,...' नपुंसकलिङ्ग नहीं होते हैं ।
२ 'पात्र' आदि अदन्त शब्दोंके साथ एकार्थ (समानार अर्थवाले) द्विगु शब्द लचयके अनुसार नपुंसकलिङ्ग होते हैं। (जसे-पञ्चपास्त्रम्, चतुर्युगम्, त्रिभुवनम् ........")। 'पात्रादि ग्रहण करनेसे 'त्रिलोकी, त्रिवेदी,........." 'एकार्थ' ग्रहण करने से 'पञ्चकपालः (पाँच कपाल में पकाया हुआ) पुरोसशः,.......' और 'लक्ष्यानुसारत' ग्रहण करनेसे 'त्रिपुरी, पञ्चमूली,......." नपुंसकलिङ्ग नहीं होते हैं।
द्वन्द्व समासमें एकरव ( एकार्यक अर्थात् समाहार ) १, और अव्ययी. भाव समासवाले शब्द २, नपुंसकलिङ्ग होते हैं। ('क्रमशः उदा०-पाणिपादम, शिरोग्रीवम्, मानिकपाणविकम............। १ अधिस्त्रि, अधिगोपम्, द्विमुनि, त्रिमुनि, तिष्ठद्गु,.....").
१. 'मलोऽन्स्यास्पूर्व उपधा' (पा० सू० १॥ १।३५) इत्यनेनास्यात्पूर्वो वर्ण 'उपधा संघको मति ।
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