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अमरकोषः ।
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२ वाल्कं शौमादि ३ फलं तु कार्यासं वादरं च तत् । ४ कौशेयं कृमिकाशात्थं ५ राङ्कवं मृगरोमजम् ॥
[ द्वितीय काण्डे
दश त्रिषु ॥ ११० ॥
आदि फलसे, रेशमवाले कृमि ( कीड़े ) के कोएसे और भेंड़, दुम्मा भैड़ा, मृग आदिके रोएंसे कपड़े बनते हैं; अतः 'ऊन छाल, फल, कृमि और रोएँ' का 'वस्त्रयोनिः ( स्त्री है, यह १ नाम है" ) ॥
१११ ॥
१ यहांसे दश शब्द त्रिलिङ्ग हैं। ("बालकम, सौनन्, फालम्, कार्पासन, वादरम्, कौशेयम्, राङ्कम्, अनाहतम्, निष्यवाणि, तन्त्रकम्' श्री० स्वा० भा० दी० मत से ये १० शब्द त्रिलिङ्ग हैं | वाहक्रम् दौमम् (न' ) फालम्, कार्पासम्, वादरम्, कौशेपम् कृामे कोशोत्थम्, राङ्कवम्, मृगरोमजम्, अना. हतम्, निष्प्रवाणि तन्त्रकम् ( 'व' शब्द से इसका संग्रह हुआ है ), सुभूनि और महेश्वरके मत से शेष ११ शब्द त्रिलिङ्ग हैं" ) ॥
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२ वातकम्, क्षौमम् ( + न । २ त्र ), 'तिसीवट या केले आदि के छाल से बने हुए कपड़े' के २ नाम हैं ।
३ फालम्, कार्पासम् वादरम् ( + बादरम् । ३ त्रि), 'कपास इत्यादिके फलसे बने हुए कपड़े' अर्थात् 'सूती कपड़े' के ३ नाम हैं ॥
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४ कौशेयम्, कृमिकोशोध्धम् (भा० दी० सी० स्वा० + कृमिकोषोत्थम् । २ त्र ), 'पीताम्बर आदि रेशमी कपड़ा' अर्थात् 'रेशमवाले की 6 कोएके बने सूत से बुने हुए कपड़े' के २ नाम हैं ॥
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५ राङ्कवम्, मृगरोमजम् ( भा० दी० सी० स्वा० | २त्रि ), 'दुशाला, शाल, अलवान, कम्बल आदि ऊनी कपड़ा' अर्थात् 'मृग ( भेंड़ा आदि पशु ) के रोएंडे बने सूतसे चुने हुए कपड़े के या 'रङ्कनामक मृग-विशेष के रोके बने सूतसे चुने हुए कपड़े' के २ नाम हैं
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१. 'क्षौमं दुकूलं स्याद् द्वेतु' ( २६ । ११३ ) इत्यत्र 'दुकूल' शब्द साहचर्यात् 'चौमं' क्लोनमेवेत्याशयः । मत एव 'कृमिकोशोत्थ- मृगरोम ज ' शब्द पारपि पर्यायता, 'तत्रोक्त' शब्दस्यैकादशसङ्ख्यकता च सिध्यति । स्वा० मा० दो० मते तु 'कृमिकोशोत्थ- मृगरोमन 'शब्दयो पयोयता, 'क्षौम' शब्दश्च त्रिलिङ्ग एव, भत एत्र 'दश त्रिषु' इति ग्रन्यकारोक्तिः संगच्छते इति बोध्यम् ॥
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