Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 03
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 262
________________ // 479 // // 480 // // 481 // // 482 // // 483 // // 484 // तदयं कर्तृभावः स्याद्भोक्तृभावोऽथवा भवेत् / उभयानुभयभावो वा सर्वथापि न युज्यते एकान्तकर्तृभावत्वे कथं भोक्तृत्वसम्भवः / भोक्तृभावनियोगेऽपि कर्तृत्वं ननु दुःस्थितम् न चाकृतस्य भोगोऽस्ति कृतं चाऽभोगमित्यपि / उभयानुभयभावत्वे विरोधासम्भवौ ध्रुवौ यत्तथोभयभावत्वेऽप्यभ्युपेतं विरुध्यते / परिणामित्वसङ्गत्या न त्वागोऽत्रापरोऽपि वः एकान्तनित्यतायां तु तत्तथैकत्वभावतः / भवापवर्गभेदोऽपि न मुख्य उपपद्यते स्वभावापगमे यस्माद्व्यक्तैव परिणामिता। तयाऽनुपगमे त्वस्य रूपमेकं सदैव हि तत्पुन विकं वा स्यादापवर्गिकमेव वा। . आकालमेकमेतद्धि भवमुक्ती न सङ्गते . बन्धाच्च भवसंसिद्धिः सम्बन्धश्चित्रकार्यतः / तस्यैकान्तकभावत्वे न त्वेषोऽप्यनिबन्धनः नृपस्येवाभिधानाद्यः साताबन्धः प्रकीर्त्यते / अहिशङ्काविषज्ञाताच्चेतरोऽसौ निरर्थकः एवं च योगमार्गोऽपि मुक्तये यः प्रकल्प्यते। सोऽपि निविषयत्वेन कल्पनामात्रभद्रक: दिक्षादिनिवृत्त्यादि पूर्वसूर्युदितं तथा। आत्मनोऽपरिणामित्वे सर्वमेतदपार्थकम् परिणामिन्यतो नीत्या चित्रभावे तथात्मनि / अवस्थाभेदसङ्गत्या योगमार्गस्य सम्भवः 253 // 485 // // 486 // // 487 // // 488 // // 489 // // 490 //

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