Book Title: Shanti Shloak Tika Tatha Anyamat Dushanam
Author(s): Vikramvijay
Publisher: Chandulal Jamnadas

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रासंगिक शान्तिश्लोक - सटीक अने अन्यमतदूषण नामक चे नानकडां ग्रन्थोनो आ संपुट, विद्वानोना करकमलमां समर्पित करतां आनन्द थाय छे, 'सकलकुशलवल्ली' ए. पदथी शरु थती शान्तिनाथ भगवाननी एक श्लोकात्मिका स्तुति, जैन समाजना क्रियारसिकोमां सारी रीते जाणीती छे. श्रीजिनमन्दिरमां चैत्यवन्दनना प्रारंभे, सांजना प्रतिक्रमणावसरे प्रारंभमां कराता चैत्यवन्दननी पूर्वे तेम ज अन्य प्रसंगोए पण कराता चैत्यवन्दनावसरे, पहेलां मा स्तुति बोली ते पछी चैत्यवन्दन बोलवानो रीवाज, लगभग रूढ थयेलो जोवामां आवे छे. आ स्तुतिना कर्ता कोण छे ? ए हजी सुधी तो अमारा जाणवामां आव्युं नथी. कर्ताए आ एक ज स्वतंत्र स्तुति बनावी द्दशे के कोई प्रन्धना मंगलादि रूपमां आ स्तुति बनी दशे ते पण साधनना अभावे जाणी शकायुं नथी. गमे तेम हो, आ स्तुतिनो आदर तपागच्छमां तो एकसरखो जोवाय छे, एटले एम पण संभवी शके के आना कर्ता तपागच्छीय परंपराना कोई विद्वान् होय ! अर्थावगमनी दृष्टिए सुबोध लागती या स्तुति उपर टीकानी के विवेचननी कोई कृति होय ए सामान्यतया ख्यालमां पण न आवे एवी हकीकत छे. ज्यारे आ अत्र मुद्रित करायेली व्याख्यानी प्रति अमारा अवलोकनमां आवी त्यारे अमने सानन्द आश्चर्य थयुं. बरावर अवलोकतां निरुक्ति अने व्याकरणनी केटलीक चर्चाओने अवलंबीने आ व्याख्यामां व्याख्याकारे स्तुतिनो अर्थ करवानो बोधक प्रयत्न कर्यो छे ए जणाता, शब्दशास्त्रना For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31