Book Title: Param Guru Pravachan 01 Author(s): Pratap J Tolia Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram View full book textPage 6
________________ . . सम्पादकीय अनंत अनंत भाव-भेदो अने दृष्टिकोणोथी प्रबोधित वीतराग वापीनो सार वीतराग पंथ पर चालता महत् पुरुषोनी आप्तवाणीमाथी मळे छे. आ काळना आवा दुर्लभ महापुरुषोमां प्रमुख एवा प्रकट सत्पुरुष अने प्रसिद्धि-मोह-मुक्त गुप्तज्ञानी परमकृपालु देव. श्रीमद् राजचन्द्रजीनी वाणी आवी प्रबळ, प्रांजळ, सरळ, निर्मळ, प्रभावपूर्ण वाणी हती. आपणा सद्भारये आपणने ते तेमना समर्थ अक्षरदेह रुपे ग्रंथस्थ थयेली अने यथावत् जळवायेली मळे छे. ए ज वाणी अने जीवनादर्शने स्वयं विचारी, आचरी, जीवी जईने, आत्मसात् करीने आपणने सार्थक परिभाषा आपनार आ युगना अन्य गुप्त महापुरुष हता योगीन्द्र युगप्रधान श्री सहजानंदधनजी महाराज ( भद्रमुनि ). तेमनी प्रेरक वाणी आपणने एक बधु लाभरुपे तेमना पोताना ज अनुभूति भरेला अवाजमां स्वरस्थ -ध्वनिमुद्रित-टेइप थयेली मळे छे. तेमनी आ सरळ, निर्मळ सरिता-शी स्याद्वाद शैलीनी वाणीमां वीतराग भगवंतोना आत्मबोधनुं दर्शन मरेलुं छे, जे आत्मलक्ष्यने स्पष्ट अने सुदृढ बनाववाने समर्थ छे. सद्गुरुदेव श्री सहजानंदघनजीना निकटवर्ती स्वर्गीय अग्रज श्री चंदुभाई टोलिया अने तेमना परमकृपापात्र श्री नवीनभाईPage Navigation
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