Book Title: Param Guru Pravachan 01
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ छे : “ मने अहीं दुःखे छे, मने आम थाय छे." आ विषप्रयोग वडे क्षणभरने माटे, अमुक समयने माटे आपणे अनुभव करी शकीए छीए. चैतन्यविज्ञाननो प्रयोग स्वकाळ : तो आ चैतन्यविज्ञाननो प्रयोग छे-पोताना चैतन्य करंटने पावर हाउसमा समाववानी कळा ! ए जो आवडे, स्वक्षेत्रमा पोताना करंटने स्वभावे टकावीए जे काळे, ते काळे बहारना उपसर्गों के परिसहो, बहारना कष्टो आत्मभावमां विचलित करी शके नहीं. इष्टानिष्ट भावे आ जीव समत्व भावमा रही शके ? रहे. जे काळे आ प्रयोग स्व-द्रव्य करशे ते काळ खरेखर धन्य छे. ते "स्वकाळ" छे, ते धन्य छे. बहारना काळनी साथे लेवादेवा नथी. अने ए रीते जो कोई पुरुषार्थ करे, काळ, स्वभाव अने नियति त्रणने साथे लईने, केवळ भाग्यने भरोसे नहीं. भाग्यने अनुसार जे परिस्थितिओ निर्माण थाय छे तेनी सामे आ रीतिए रहे, आ रीते पुरुषार्थ करे, आ महेनत करे, तो आत्मानी शुद्धि अने सिद्धि अवश्य भावि छे ज, थाय ज. स्वभावने अनुकूळ थतो नथी. स्वक्षेत्रमा प्रवेश करतो नथी. स्वद्रव्य ( आ जैन परिभाषानी व्याख्याओ छे. ) द्रव्य एटले द्रवति दौषति अदु द्रवत् इति द्रव्यम् । जे एक पदार्थ एवी द्रवणक्रियायुक्त छे, जेनी भूतकाळनी अवस्थाओ - द्रवी चुकी छे, वर्तमाननी द्रवी रही छे अने भविष्यनी द्रवशे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38