Book Title: Param Guru Pravachan 01
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram
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छे ज ने ! खुल्ली प्रयोग शोळा छे, अंदर शुं ? प्रगट, चोरे ! तो आ बधुं जे कंइ सारं सारं देखाय छे ते रुपांतर छे. एज पार्छु खराब देखाशे. ए अणुओ बदलाया ज करे छे, परिवर्तित थया ज करे छे. एटले आ बधुं जे आकार-प्रकार रुपे देखायजणाय जे, ते बधुं पुद्गल छे. बधुं जगतनुं ओठवाड छे. ( बधो जगतनो ओठवाड छे.) अने एमां जे कांइ लेती - देती अने वह्निवटो साचा मानी बेठा छीए, संबंधो साचा मानी बेठा छीए, ते खप्न जेवा छे. आंख बंघ थइ एटले बस. हंस ऊडी गयो, पछी तमारा संबंधो ख़तम. त्यां सुधी मानी बेसो तो य शुं अने न मानो तो य शुं ? आखर मानवा लायक नथी. शुद्ध जाग्रत अवस्थावाळो ए तो आ मानतो नथी. निद्रामां जे स्वप्नुं आवे तेवी स्थितिमां जे होय, भले आंखो खोलीने जोतो होय, पोताने जाग्रत मानतो होय के " हुं जागुं लुं, बराबर जोउं छं, हुं समजुं कुं, हु डाह्यो छं." पण एना भावोमां स्वप्नावस्था छे,
एटले जाग्रत जाग्रत थाओ, जाग्रत थाओ. " हे जीव ! प्रमाद छोडी जाग्रत था ! जाग्रत था ! नहीं तो रत्नचिंतामणि जेवो आ मनुष्य देह निष्फळ जरो," आ ' जाग्रत था ' नी जे पोकार करी छे ने ! आम सादा सीधा शब्दो देखाय छे, पण अर्थ गंभीर छे. सतत आत्मभाव, स्वरुप- जागृति आ भान कायम राखीने जे जे फरजो छे ते अदा करो ! कोण मना करे छे ? बधाने कंइ बाबा बनवानुं नथी. कां. बघा त्यागी बनी जाय तो ज एने केवळ

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