Book Title: Param Guru Pravachan 01
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 30
________________ छूटी करो एटले जुओ आझाद ! त्यारे सुख मनावशे. ते पुण्यकरणी पुण्यबंधरुपे अने पापकरणी पापबंधरुपे. ए बनेनो अभाव ज्यां छ त्यां धर्म छे. एटले के मन वशवर्ती छे. धर्म एटले शु? मननी धरपकड. मन वशवर्ती रहे त्यां पुण्य पण नहीं अने पाप पण नहीं, पण पुण्य-पाप रहित एवी सहज स्वभावी स्थिति, समाधि स्थिति, सहज समाधि ! सहज समाधि अने श्रीमद्जी : " सहज समाधि भली, संतो सहज समाधि भली ।" ( श्रीमद्जीने ) वेपार करतां पण सहज समाधि हती ! झवेरी बजारमां झवेरी बेठा छे. अने बीडो केटलो वेपारनो! प्रसिद्ध नामचीन व्यापारी अने नामचीन कवि अने ज्ञानी, शतावधानी ! केटली ख्याति हती ! औ. पीटर्सन, हर्मन जैकोबी जेवा पण एमनी पासे आवता, सलाह लेता. बॅरिस्टर गांधीजी जे " महात्मा गांधीजी" बन्या ते पण एमनी कृपाथी ! ! एटले मोटा मोटा बुद्धिमानो, त्यागी-तपस्वीओ, भिन्न भिन्न धर्मना विचारको-ठठ जामी होय ! अने एक तरफ वेपारीओ अने दलालो, एक साथे एमनी गद्दीमां हाजर होय. कोइ वेपारना प्रश्न करे छे तेने ते जवाब अपायो, पण अनुसंधान – सहज समाधिमां फरक नहीं ! " आत्मा ब्रह्मसमाधिमां छे, मन वनमां छे. एकबीजाना आभासे देह कंइ क्रिया करे छे." एq (पोते ) लख्यु छे ! आपे एमनुं साहित्य वांच्यु के नहीं ? वांचवा लायक छे. बड़ा प्रेरक है। मन एy काम

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