Book Title: Param Guru Pravachan 01
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram
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ए प्रयोग वगर, आपणी “ सुरता "ने, आपणा लक्षने आत्माकार अंतर्मुख समाव्या वगर, धर्मने नामे जे कई कराय छे ते बधुं अधर्म छे, धर्म नथी. लक्ष क्यां छे अने माळा फेरवे छे ! दृष्टि अने दृष्टानी वच्चे पडदो छे त्यां लक्ष जो लागशे तो ध्यानाग्नि प्रगट थशे अने ए बळशे, हटशे अने दिदारनां दर्शन थशे. ए आत्मदर्शन, आत्मज्ञान, आत्मसमाधि अर्थे आ बधु आराधन छे. पण लक्ष ज बहिर्मुख. रेकर्ड उपर पीन अद्धर छे, 'टच' नथी (थती), तो संगीत केम संभळाय ? एटले ज महापुरुषोए ( कह्युः ) "अंतर्लक्ष विगत उपरथी मथतां निशदिन पाणी."
अंतर्लक्ष:
___ अंतर्लक्ष वगर जे लोको धर्मना नामे आचरण करे छे, तप, जप अने क्रियानो खप करे छे तेओ खरेखर माखणने माटे पाणी वलोवे छे. पाणीने वलोवीने जो माखण मळतुं होत तो आ मांघवारी तो न थात घीनी, केम भाइ ? पाणीने वलोवीने माखण नीकळी शके ज नहीं. पाणीमां ए तत्त्व नथी. दूध, दहींने वलोवे तो हजी ये नीकळे. तो लक्ष बहार राखीने धर्मने नामे जे कंइ क्रियाओ कराय छे तेनुं परिणाम शून्य. जे आपणे इच्छीए छीए ते नहीं बने.
अंतर्लक्ष – शांभवी मुद्रा. वैदिक परिपाटीमां कही छे शांभवी मुद्रा :

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