Book Title: Navsmaranadisangraha
Author(s): Vicharshreeji, Damayantishreeji
Publisher: Nagindas Kevalshi Shah Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 192
________________ चतुशरणप्रकीर्णकम् । १५९ निदलिअकलुसकम्मो, कयसुहजम्मो खलीकयअहम्मो। पमुहपरिणामरम्मो, सरणं मे होउ जिणधम्मो ॥४४॥ कालत्तए वि न मयं, अम्मण-जर-मरण-चाहिसयसमयं । अमयं व बहुमयं जिणमयं च सरणं पवन्नो हं ॥४५॥ पसमिअकामपमोहं, दिहा-दिहेसु न कलियविरोहं । सिवसुहफलयममोहं, धम्मं सरणं पवनो है ॥४६॥ नरयगइगमणरोहं, गुणसंदोहं पवाइनिक्खोहं । निहणियवम्महजोहं, धम्म सरणं पवनो है ॥४७॥ भासुरसुवन्नसुंदररयणालंकारगारवमहग्छ । निहिमिव दोगश्चहरं, धम्मं जिणदेसिअं वंदे ॥४८॥ चउसरणगमणसंचिअसुचरिअरोमंचअंचिअसरीरो । कयदुकडगरिहाअसुहकम्मखयकंखिरो भणइ ॥४९॥ इहभविअमनभविअं, मिच्छत्तपवत्तणं जमहिगरणं । जिणपवयणपडिकुटुं, दुटुं गरिहामि तं पावं ॥२०॥ मिच्छत्ततमंधेणं, अरिहंताइसु अवनवयणं जं। अनाणेण विरइअं, इन्हि गरिहामि तं पावं ॥५॥ सुअधम्म-संघ-साहुसु, पावं पडिणीअयाइ जं रइ। अन्नेसु अ पावेसुं, इन्हि गरिहामि तं पावं ॥५२॥ अन्नेसु अ जीवेसुं, मित्ती करुणाइगोअरेसु कयं । परिआवणाइ दुक्ख, इन्हि गरिहामि तं पावं ॥५३॥ जं मण-बय-काएहिं, कय-कारिअ-अणुमईहिं आयरि। धम्मविरुद्धमसुद्धं, सब्वं गरिहामि तं पावं ॥५४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258