Book Title: Navsmaranadisangraha
Author(s): Vicharshreeji, Damayantishreeji
Publisher: Nagindas Kevalshi Shah Ahmedabad

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Page 210
________________ श्रीसीताजीनी समाय। जसडंको देइ करी, रामचंद्रजी आव्या । अयोध्यामां हर्ष वधामणां, मोतीडे वधाव्या ॥धन०॥१८॥ सासुजीने पाय लागी करी, सासुजीए दीधी आशिष । दोय पुत्र जणजो पदमणी, कुळना हितकारी ॥धन०॥१९॥ छोड्यां ते मंदिर माळीयां, छोड्या गरथ भंडार । सीताजीए संयम आदयों, पहोंच्यां बारमे देवलोक ॥धन०॥२०॥ नव गाथा पूरवे हती, बार कीधीरे बीजी। कर जोडी पद्मविजय वीनवे, प्रभु मने पार ऊतार ॥धन०॥२१॥ ढाल-बीजी। (सुण गोवालणी-राग) अहो राणाजी कयुं मानो तो अभिमान सर्व टाळीए । अहो राणाजी रघुपति केरा चरण कमळ धोइ पीजीए । अहो राणाजी नाना छे पण ते नर मोटा कहेवाय छ । अहो राणाजी एना दर्शनथी काइ मनोरथ सर्व पूराय छे । एना दशरथ सरखा पिता छे, एनी कौशल्याजी माता छ । एना लक्ष्मण सरीखा भ्राता छ, . अहो राणाजी०॥ एना भरत शत्रुघ्न भाई छे, एने सुग्रीव तो सखाई छ । एने हनुमान सदा सुखदाई छे, अहो राणाजी०॥ दाल-त्रीजी। सुणि मंदोदरी नारायण नमवाने मारे नेम छे, सुणि मंदोदरी आदिने अंते ते मारे नेम छे, मारे कुंभकर्ण सरीखा भाई छे, मारे गढने फरती खाई छे, मारे सवालाख जमाई छे, सुणि०॥१॥ १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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