Book Title: Navsmaranadisangraha
Author(s): Vicharshreeji, Damayantishreeji
Publisher: Nagindas Kevalshi Shah Ahmedabad

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Page 235
________________ २०२ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे श्री गौतमस्वामिनो रास । ( भाषा) वीरजिणेसर चरणकमलकमलाकयवासो, पणमवि पभणिशुं सामिसाल गोयमगुरुरासो । मण तणु वयण एकंत करवि निसुणो भो भविया, जिम निवसे तुम देहगेह गुणगणगहगहिया ॥१॥ जंबूदीव सिरिभरहखित्त खोगीतलमंडण, मगध देस सेणिय नरेस रिउदलबलखंडण । धणवर गुब्बर गाम नाम जिहां गुणगणसज्जा, विप्प वसे वसुभूइ तत्थ जसु पुहवी भज्जा ॥ २॥ ताण पुत्त सिरि इंदभूइ भूवलय पसिद्धो, उदह विना विविहरूव नारी रस विद्धो (लुद्रो) । विनय विवेक विचार सार गुणगणह मनोहर, सात हाथ सुप्रमाण देह रूपे रंभावर || ३ || नयण वयण कर चरण जिणवि पंकज जळे पाडिय, तेजे तारा चंद सूर आकाश भमाडिय । रूवे मय अनंग करवि मेल्हिओ निरघाडिय, धीरम मेरु गंभीर सिंधु चंगमचयचाडिय ||४|| पेखवि निरुवम रूव जास जण जंपे किंचिय, एकाकी कलि भीत इत्थ गुण मेहल्या संचिय | अहवा निश्चय पुव्वजम्म जिणवर इणे अंचिय, रंभा पउमा गोरी गंग रति हा ! विधि वंचिय ॥ ५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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