Book Title: Navsmaranadisangraha
Author(s): Vicharshreeji, Damayantishreeji
Publisher: Nagindas Kevalshi Shah Ahmedabad

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Page 218
________________ सीमंधरजिनआलोयणस्तवन । बहु विधना हा करम उपायां जे जिहां, में तो जाणे अजाणे तेह जगजीवना । में सेव्यां पापस्थान अढार जे, प्रभु आलोउं छु तेह जगजीवना ॥१०॥ में मलीने हो मित्रसुं कीधी वंचना, वली कीधा विश्वास जगजीवना। में परनो हो द्वेषपणे द्रोह चिंतव्यो, एम केता कहुं अवदात जगजीवना ॥११॥ छाना छपना हो करम करसे करी, में तो मूढपणे महाराज जगजीवना। तुम साखे हो सांभरे न सांभरे, ते तो आलोउं छु आज जगजीवना ॥१२॥ मातपिता पुत्र कलत्र तणे मोहे, वली सगपण ने संबंध जगजीवना । साधारण हो करम कोधां बहुभातिनां, निबिड जेहना दृढ बंध जगजीवना ॥१३॥ जिम कसतां हो कुंदन अधिक शोभा लहे, जेम ओखद जाये रोग जगजीवना । साबुजले जेम वस्त्र उज्ज्वल होवे, तिम पाप टले गुरुयोग जगजीवना ॥१४॥ मनशुद्धे हो मेली मननो आंतरो, गुरुसाखे सुविचार जगजीवना । मालोतां हो उदयरत्न कहे आतमा, निर्मल होय निरधार जगजीवना ॥१५॥ ॥ इति उदयरत्नकृतं श्रीसीमंघरजिनआलोयणस्तवन ॥ - खामणां सज्झाय । (झुमखडानी देशी) पंचपरमेष्ठि ध्याईए रे गुण तेहना संभार करो भवि खामणां । सीस नामीने खामणा रे साधवी पण गुणधार करो भवि खामणां ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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