Book Title: Navsmaranadisangraha
Author(s): Vicharshreeji, Damayantishreeji
Publisher: Nagindas Kevalshi Shah Ahmedabad

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Page 245
________________ २१२ नवस्मरणाविसङ्ग्रहे धर्मथकी मानव अवतार, धर्मथकी उत्तम कुल सार । धर्मथकी काया नीरोग, धर्मथकी सद्गुरुसंयोग ॥१६॥ धर्मथकी लहे लीलविलास, धर्मथकी शिवसुख होय खास । धर्मथकी तिथंकर होय, श्रीसिद्धांत संभाळी सोय ॥१७|| दुलहो दशदृष्टांते सार, श्रावककुल पाम्यो अवतार । हवे अहिलेइ म हारिस भाय, करो धरम भवदुख मिट जाय ॥१८॥ मंगलिक चार तणां ए नाम, चित्तमां घरमा तीरथठाम । श्रीसिद्धाचलने गिरनार, आबू तारंगो मनोहार ॥१९॥ समेतशिखर वंदु जिन वीश, अष्टापद समरो निशदोश । पारकरमा गोडी जिनराय, वरण अढारे सेवे पाय ॥२०॥ वढीयारे शंखेश्वर धणी, तस कीर्ति छे जगमा घणी। ए आदी तीरथ विशाल, ते संभारो थई उजमाल ॥२१॥ शाश्वती अशाश्वती प्रतिमा जेह, स्वर्ग मृत्यु पाताले तेह । नानी मोटी प्रतिमा कही, भवियण भावे प्रणमो सही ॥२२॥ शासननायक वीरजिणंद, मुख सोहे पूनम जिम चंद । करजोडीने मागुं एह, मुजने कहीई म देस्यो छेह ॥२३॥ सिद्धि-वेद-नाग-शशिसहि( १८४८), संवत्सर ए संख्या कही। इंद्रभूतिकेवलदिन जाण, मंगलपचीशी थई परमाण ॥२४॥ भणसे गणसे जे प्रभात, मंगलमाला लहे सुखसात । हीरवर्धन सुगुरु पसाय, खेमवर्धन नित्य नित्य गुण गाय ॥२५॥ ॥ इति मंगलपचीशी॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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