Book Title: Navsmaranadisangraha
Author(s): Vicharshreeji, Damayantishreeji
Publisher: Nagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
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एह जपतां
दुर्गतिदोषविकार;
नवस्मरणादिसङ्ग्रहे जाये, सुपरे ए समरो, चौदपुरनो सार ॥४॥ जनमांतर जातां, जो पामे नवकार; तो पातिक गाळी, पामे सुरअवतार । ए नवपद सरिखो, मंत्र न कोई सार; इहभव ने परभवे, सुख संपत्ति दातार ||५|| ज्युं भील भीलडी, राजा राणी थाय; राजसिंह
नवपद महिमाथी,
राणी रतनवती बेहु, पाम्यां छे
शिववधू वर
एक भव पछी लेशे, श्रीमतीने ए वली,
महाराय ।
सुरभोग;
मंत्र फल्यो तत्काल;
प्रगट थई फुलमाळ ।
फणिधर फीटीने, शिवकुमरे जोगी, सोबनपुरिसो कीध;
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एम एणे मंत्रे, काज घणांनां सिद्ध ||७|| ए दश अधिकारे, वीर जिणेसर भाख्यो; आराधन केरो विधि, जेणे चित्त मांहि राख्यो । तेणे पाप पखाळी, भवभय दूरे नांख्यो;
जिनविनय करंतां, सुमति अमृतरस चाख्यो || ८ || ढाल ८ मो
( नमो भवि भावशुं ए देशी . )
सिद्धारथरायकुळतिलो ए, त्रिसला मात अवनितले तमे अवतर्या ए करवा
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संजोग ||६॥
1
माल्हार अम उपकार जयो जिन वीरजी ए ॥१॥
तो
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