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प्रभातमां भाववानी भावना ।
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विषे रथसमान, अशरणना शरणभूत, भवसंसारना भयटालक, भाविक कोकोने प्रीति भोजन समान, आठ कर्मरूप अगाध समुद्रतारण वहाणसमान, समग्र क्रिया अनुष्ठानादिक गुणनी मंजूषासमान, जयवंता, विषम जे कदर्प तेना जे बाग तेने वारवाने सन्नाहसमान, एवा जे श्री अरिहंत भगवान तेने मारी क्रोड ० ||२३||
हुं धन्य, हुं पुण्यवंत पवित्र थयो, मारो मनुष्य भव सफल थयो, जे कारणे, श्री वीतरागना चरण कमलनी भेट थई ए दिवस धन्य कृतार्थ, ए प्रहर सुमुहूर्त सुपवित्र जाणवो जे वेला जगद्गुरु जिनराजने हुं भेट्यो, आज मारे रत्नचिंतामणि कल्पवृक्ष कामधेनु कामकुंभ ए सर्व सुलभ थयां, आजे मने अपूर्व वस्तु मली, मारा मोटा भाग्यनो उदय थयो, अढारदोषरहित होय तेने तीर्थंकर कहिए, आठ कर्मना मंथनहार, मोक्ष नगरना सार्थवाह, कर्मपीडारहित, एवा जगन्नाथने स्तवुं कुं, भरतक्षेत्रे अतीत चोवीशीमां प्रथम तीर्थंकर अने केवलज्ञानी निर्वाणी आदि तथा वर्तमान चोविशीमां, प्रथम ऋषभदेव प्रमुख चोवीश तीर्थंकरने तथा अनागत चोविशीमां श्रीपद्मनाभ श्रीश्रेणीक राजानो जीव आदि, त्रण चोवीशीनां बहोंतरे तीर्थंकर वीस विहरमान चार शाश्वता तीर्थंकर मली छन्नु जिन ए सर्वेने मारी क्रोड० ॥ २४ ॥
श्री अरिहंत भगवान तथा श्री सिद्ध भगवान, तथा श्री आचार्यजी, तथा श्री उपाध्यायजी तथा श्री साधु मुनिराज, ए पंच परमेष्ठिने मारी क्रोड० ||२५||
॥ इति भावना संपूर्ण ||
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