Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ जो अमूल्य ज्ञानका खजाना पूर्व महर्षि अपने लिये रख गये हैं उसे समझनेकीभी पूरी शक्ति नहीं यह कितने दुःखकी वात है? ___ महाशयो ! मैं पहलेही कहचुकाहूं कि समग्र साधु समुदायके एकत्र होनेकी वहुत जरूरत थी. क्यों कि, एकत्र होनेसे पृथक पृथक गच्छोंमें या एकही गच्छके भिन्न भिन्न समुदायोंमें जो परस्पर मतभेद तथा भिन्न भिन्न विचारादि है, वह दूर हो सकते हैं. और आपसमें प्रीतिभाव उत्पन्न होता है. परंतु वर्तमान स्थितिका अवलोकन करनेसे मुझे मालूम हुआ कि, श्वेतांवर संप्रदायके समग्र साधुओंका एकत्र होनेका हाल कोईभी संयोग नहीं है. विलकुल न होनेसे तो केवल अपने (श्री आत्मारामजी महाराजके ) समुदायके साधुओंका ही एक सम्मेलन हो तो बहुत अच्छा है. ऐसा मेरा विचार था ही. कि इतनेमें मुनि श्रीवल्लभ विजयजीकी तरफसे सूचना हुई. और शाशन देवकी कृपासे वह मेरा मनोर्थ और मुनिश्री बल्लभविजयजीके श्लाघनीय उद्यमका फलरूप कार्य यह संमेलन नजर आ रहा है. साधु संमेलन होनेकी खबर सुनकर सव जैनसमाज खुश होगा. और यही कहेगा कि यह विचार अत्युत्तम है इसको अमलमें लानेकी पूर्ण आवश्यकता है. परंतु व्यवहार दृष्टिसे मालूम होता है कि," श्रेयांसि बहु विघ्नानि" इस नियमानुसार वीचमें आफतक पहाडभी खड़े है. क्यों कि साधु सम्मेलनकी शुरुआत करनी और निरंतर अमुक समयके वाद सम्मेलन होना चाहिये, ऐसा सिलसिला जारी रखना यह काम

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59