Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
View full book text
________________
१६
करनेकी पूरी आवश्यकता है इस नियमके पास होनेसे, कई प्रकारके फायदे हैं प्रथम तो, यही वडा लाभ होगा कि, साधुओंकी स्वच्छंदता वढनी बंद हो जावेगी नहीं तो, आपसमें अर्थात् गुरु शिष्योंमें या गुरुभाई आदिमें छदमस्थ होनेसे, साधारणभी वोलाचाली या खटपट हो गई हो, तो झट दूसरे साधुके पास जानेके इरादेसे यह जानके कि, क्या है ? यहां नहीं मन मिला तो दूसरेके पास जा रहेंगे झट समुदायसे पैर वाहर . रखनेकी, मरजी हो जायगी और जव ऐसा होगा तो विनयादि गुण, जो खास मुनिके भूषणरूप हैं उनका नाश होगा. यह तो, आप अच्छी तरह जानते हैं कि आजकलके साधारण जीवोंमें कितना वैराग्य और विरक्त भाव है. इस लिये इस नियमके करनेसे स्वछंदताका कारण नष्ट होगा क्यों कि, जव कोई नाराज हो कर दूसरे साधुके पास जानेका इरादा करेगा. तो वह पहले इस वातको अवश्य विचार लेगा कि, मैं दूसरेके पास जातातो हूं परंतु, आचार्य महाराजकी आज्ञा वगैर तो अन्य रखेंगेंही नहीं. और जव आचार्यश्रीकी आज्ञा मंगाऊंगा तो सारा वृत्तांतही प्रगट हो जायेगा. फिरतो, जैसी आचार्यजीकी मरजी होगी तदनुसार वनेगा इत्यादि विचार स्वयं ठिकाने आ जायेगा और ऐसा होनेसे वो गुण प्रगट होगा कि जिस गुणके प्रभावसे साधुमें सहनशीलता परस्पर प्रीतिभाव (संप) की वृद्धि होगी. अतः इस नियमको पास करनेके लिये जोरके साथ मैं मुनिमंडलके ध्यानको आकर्पित करता हूं."