Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad

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Page 23
________________ २१ गृह ( मोसाल - नानके) के जैसा हाल हो रहा है ! वहां आहार पानी आदिकी शुद्धि कितनी और किस प्रकार रहती है सो साधु साध्वी क्या श्रावक श्राविकाभी अच्छी तरह जानते हैं ! कि, राग दृष्टिके वशहो भक्तिके बदले भुक्ति की जाती है ! यदि वह साधु साध्वी जुदे जुदे स्थानोंमें चतुर्मासादि करें. तथा, अन्यान्य देशमें विहार करें तो, कितना बड़ा भारी लाभ साधु साध्वी और श्रावक श्राविका दोनोंही पक्षको हो ! बेशक ! मेरा कहना कईयोंको नागवार गुजरेगा मगर न्यायदृष्टिसे शोचेंगे तो यकीन हैं कि वो स्वयं अपनी भूल स्वीकार करेंगे. इसलिये अपनी कमजोरीको छोडकर चुस्त वनो ! मेरी यह खास सूचना है कि, हरएक साधु अपने संaish अलावाभी जो हो, याने श्वेतांवर संप्रदाय के हरएक साधुको गुजरात तथा मोटे २ शहरों परसे मोह ममत्व छोड़कर गांमोंमें जहां साधुओंका विहार नहीं और जहां साधुओंके लिये श्रावक लोक अपने यहां पधारनेकी पुकार कर रहे हैं ऐसे स्थानोंमें साधुओंका विहार होना चाहिये. ऐसे स्थानों में बिहार होनेसे बडाही लाभ होनेका संभव है. नीतिकारोंका कथन है कि अति सर्वत्र वर्जयेत् क्षीरानसेभी किसीक्त चित्त कंटाल जाता है ! वरात वगैरह जिमणवारोंमें जहां नित्यंप्रति मिष्टान्नही भोजन मिलता है वहांभी मिष्टान्नसे अरुचि होती नजर आती है ! मैं नहीं कह सकताक यह बात कहांतक सत्य है मगर मेरा ख्याल है कि, अगर पांच सात वर्षपर्यंत साधु साध्वी अनुग्रह दृष्टिसे क्षेत्रों के ममत्वको त्याग मरु मालवा मेवाडादिकी तर्फ सु नजर करें तो

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