Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad

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Page 28
________________ 66 २६ द्वितीयाधिवेशन 31 बराबर दो बजे सभापति श्रीआचार्य महाराजजी मुनिमंडल सहित आविराजे. श्रावकश्राविका वा अन्य प्रेक्षक गणोंसे स्थान उसी प्रकार भर गया. सभापतिजीकी आज्ञासे मंगलाचरणपूर्वक कार्य प्रारंभ किया गया. प्रस्ताव तेरवां ( १३ ) साधुके आचार विचारमें किसी प्रकारकी हानि न आवे इस रीतिपर अपने साधुओंको जैनोंसे अतिरिक्त अन्य लोगोकोभी जाहिर व्याख्यानद्वारा लाभ देनेका रीवाज रखना चाहिये, तथा और किसीका व्याख्यान पवलिकमें जाहिर तरीके होता हो तो उसमें भी, द्रव्यक्षेत्र कालभावको देखकर साधुको जानेके लिये छूट होनी चाहिये. ही इतना जरूर होवे कि, हर दो कार्यमें रत्नाधिक ( बड़े ) की आज्ञाविना प्रयत्न न किया जावे निराज श्रीवल्लभविजयजीने इस नियमको पेश करते हुए विवेचन किया कि, महाशयो ! यह नियम जो मैंने आप साहिवोंके समक्ष पेश किया है जमानेके लिहाज से वह बडेही महत्वका और धर्मको फायदा पहुंचानेवाला है. जैनेनर छोगाम जैनधर्मके तत्वोंका प्रचार करनेका

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