Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
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वड़ी हैं ! इस मुजिव चाहे कोई छोटा हो या बड़ा हो, अमीर हो या गरीब हो, साधु हो या गृहस्थ हो अपने अपने अधिकारमें अपने अपने स्थानमें निज निज कार्यके करनेमें सबही बडे हैं ! कसी और सूईकी तर्फ ख्याल किया जावे ! सीनेके काममेंसूईही बड़ी मानी जायगी और खोदनेके काममें कसीही बड़ी मानी जायगी ! परंतु जो काम सबका साधारण है, वो काम तो सबके एकत्र होनेसेही हो सकता है. जैसा कि पांचोंही अंगुलियोंके मिलनेसे पैदा हुए 'थप्पड' का काम जब पांचोंका मेल होता है तबही होता नजर आता है ! यदि पांचोंमेसे एकभी अंगुलि जुदी रहे तो थप्पडका काम नहीं हो सकता ! अथवा पांचों अंगुलियोंके मिलनेसेही दाल चावल आदिका 'ग्रास' ठीक ठीक उठाया जाता है, यदि पांचोंमेंसे एकभी अंगुलि वरावर साथमें ना मिले तो ग्रास नहीं उठाया जाता! जिसमेंभी बड़ी अंगुलियोंको संकुचित होकर छोटीके साथ मिलकर काम करना पड़ता है ! यदि बड़ी अंगुलिये संकुचित न होवे तो उनके मेलमें फरक पड़जानेसे निर्धारित कार्यकीभी सिद्धि यथार्थ नहीं होती.
सभ्य श्रोहगण ! आपने देखा, संप कैसी वस्तु है ! पूर्वोक्त हस्तांगुलिके दृष्टांतसे केवल संपकी ही शिक्षा लेनी योग्य है, इतनाही नहीं; वलकि, जैसे ग्रास ग्रहण करनेके समय बड़ी अंगुलियोंके संकुचित. हो, छोरौके साथ मिलकर काम करनेसे कार्यसिद्धि होती है, ऐसेही कार्यसिद्धिके लिये बड़े पुरुषोंको किसी समय गंभीर वन छोटोंके साथ मिलकर ही काम करना योग्य है. नाकि, अपने वडप्पनके घमं