Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
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(१)
• " सांजवर्तमान.” (मुंबई:-गुरुवार. ता. २७-७-१९१२.) । हमको देख संतोष होता है कि, जेनोंमे मान पाये हुए और जिनके वर्तन संबंधी किसी जैनने आक्षेप नहीं किया है ! ऐसे आत्मारामजी महाराजके साधु. ओंका बडौदामें सम्मेलन हुआथा. प्रमुखस्थाने श्रीविजयकमलसरि. विराजे थे. आप वृद्ध और अनुभवी हैं ! आपनें अपने व्याख्यानमें प्रऋट तया जाहिर किया है कि, आजकलके समयमें सर्व साधुओं की कॉन्फ्रन्स ( सभा ) एकत्र होनी अशक्य समझ एकही समुदायके साधुओका सम्मेलन हुआ है.. .
इस सम्मेलनके पास किये प्रस्ताव अत्यावश्यकीय हैं. उनका पालन इस समुदायके साधुतो अवश्यही करेंगे; परंतु हम निश्चय करते हैं कि, यदि अन्यान्य समुदायके साधुभी इनका पालन करेंगे तो जैन कॉममें वारंवार खड़े होते टंदे फिलाद दूर हो जायेंगे!
बडौदेकी इस कॉन्फ्रेन्सके पास किये प्रस्ताव . कितनेक जैन साधुओंको रुचिकर न होंगे ! और कितनेक अपनेपर आक्षेप रूप समझेंगे! परंतु जैन प्रजाका फरज है कि, इस सम्मेलनके पास किये प्रस्ताव अन्य साधुभी पालन करे ऐसा उद्यम करें ! यदि ये प्रस्ताव जैन धर्मके अनुकूल . हैं तो उस प्रकारका वीव करनेके लिये अन्य साधुओंको प्रेरणा करनेमें कोई प्रकारकी गैर मुनासिवी. नहीं समझी जा सकती ! बलकि, जो साधु इन प्रस्तावोंको न स्वीकार करें उनको साधु तरीके कितना मान देना उसपर विचार करनेका मौका जैनोंको मिल जा. यगा ! क्यों कि जैनोंकी खरी उन्नति उनके साधुओंके नुधारेमें रही हुई है और धर्मगुरुके वर्तनके अनुसार प्रायः सामान्य लोगोंकी प्रवृत्ति होती है !
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