Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
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होते जाते हैं इसवातपर, इसमुनिमंडलको मानपूर्वक ध्यान देना चाहिये. और सम्मति प्रगट करनी चाहियेकि, साधुओको गुजरात छोड हिन्दुस्तानके हरएक हिस्सोंमें विहार करनेकी तजवीज करनी चाहिये.
इस प्रस्तावको मुनिराजश्री वल्लभविजयजी महाराजने पेश करते हुए कहाकि
महाशयो ! आप अच्छी तरह जानते हैं कि, साधु मोटे मोटे शहरों में संख्याध पंदरा पंदरा वीस बीस हमेशह पडे रहते हैं ! लेकिन, ऐसे बहुत ग्राम खाली रह जाते हैं जहांपर शहरोंके बनिसवत अलभ्य लाभ हो. कितनेक साधुतो विहारकी सुगमता और आहार पाणीकी सुलभताको देखकर गुजरात देश छोड अन्य देशोंमें जानेकी इच्छाभी नहीं करते! जानातो दरकिनार ! फिर ख्याल करो, कि जो साधुओंके लिये परीपह सहन करनेकी भगवतने आज्ञा फरमाई है उसका अनुभव क्योंकर हो सक्ता है ? परिचित स्थानमेंतो जिसवक्त साधुमहाराज गौचरी लेनेको पधारते हैं उस वक्त मुनियोंके पीछे श्रावकोंके टोलेके टोले साथहो लेते हैं ! कोइतो इधरको खीचता है कि, इधर महाराज ! इधर पधारो ! और कोई अपनीही तरफ. लेकिन, जहां पंजाव मारवाडआदि स्थानोंमें कितनेक ठिकाने श्रावकोंके घरही नही. या वह लोग अन्य धर्मपालन करने लग गये हैं वैसे स्थानोंमें विहार होवेतो, परीपहोंकाभी अनुभव होवे.
महाशयो ! अपने साधुओंको तो प्रायःयह अच्छी तरहसे