Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad

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Page 39
________________ ३७ नंबर १७-१८ और १९ येह तीन प्रस्तावभी सभापतिजीकी तर्फसे बतौर आज्ञाके सूचन किये गयेथे. जिनको सर्व मुनिमंडलने खुशीके साथ स्वीकार करलिया. प्रस्ताव वीसवां. (२०) __ जिसको दीक्षा देनीहो उसकी कमसे कम एक महिनेतक यथाशक्ति परीक्षा कर उसके संबंधी माता, पिता, भाई, स्त्री आदिको रजिष्टरी पत्र देकर सूचना कर देनी.और दीक्षा लेनेवालेसेभी उसके संबंधियोंको जिसवक्त वो अपने पास आवे उसी समय खवर करवा देनेका ख्याल रखना. यह प्रस्ताव प्रवर्तकजी श्रीकांतिविजयजी महाराजने पेश करते हुए कहाथा कि, प्रायः अपने साधुओंमें आज तक दीक्षा संबंधी कोइ खटपट या झगडा ऐसा नहीं उठा है. जिससे हमें कोई आदमी कुछ कहभी नहीं सकता. तोभी एक सामान्य नियम के कायम करनेसे भविष्यमें हमको चिंता करनेका कारण न रहेगा. यह नियम ऐसा है कि, जिससे धर्मकी हीलना होती वंध हो जायगी. कइ एक वक्त दीक्षा लेनेवालेके सगेसंबंधियोंको वड़े क्लेशका कारण हो पडता है. और उससे निकम्मे खर्चमें उन्हें उतरना पडता है ! आजकल कोई दीक्षा लेनेवाला किसीके पास आता है तो, कितनेक साधु प्रायः उसकी परीक्षा किये वगैर झट दीक्षा दे देते हैं, जिसका परिणाम ऐसा बुरा होता है कि, लोकोंकी धर्ममें अभीति हो जाती

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