Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
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२२ उमीद है कि दोनोंकी पुष्टिद्वारा धर्मोन्नति अधिकसे अधिक होवे. एकतर्फ अपराऊपरी भोजन मिलनेसे अजीर्ण वृद्धि होती है उसकी रुकावट होजानेसे अजीर्णकी शांतिद्वारा तंदुरस्त हालतसे पुष्टि होगी. और दूसरी तर्फ भोजनका सांसा पडनेसे भूखमरेके कारण मरणप्रायः हो रहे हैं. उनको भोजन मिलनसे भूखमरेकी शांतिद्वारा-तंदुरस्त हालतकी प्राप्तिसे पुष्टि होगी. अन्यथा याद रखना ! जितनी आजकल साधु साध्वियोंकी वेकदरी हो रही है. आयिंदाको इससे अधिकही होगी ! क्या यह थोडी बेकदरी है ? साधु साधियोंके शहर में होते हुएभी कितनेक अमीर लोक तो क्या गरीवभी उस तर्फ नजर करता झिजकता है ! यह किसका प्रभाव ? एकके एकही स्थानमें ममत्व बांधकर रहनेकाही ना कि, अन्य किसीका ! क्या कभी आपने सुनाथा या सुनाहै ? कि स्वर्गवासी महात्मा श्रीमद्विजयानंद मूरि ( आत्मारामजी ) महाराजजी अमुक उपाश्रयमें या अमुक स्थानमेंही रहतेथे ? कवीमी नहीं. बस यही कारण समजिये जो कि उनकी निसवत कुल हिंदुस्तानके जेनोंके मुखसे एक सरीखाही उद्वार निकलता है. क्यों कि, उन्होंने कोई अपना नियत स्थान नहीं मानाथा ! और नाही वो अमुक अमुक शेटके गुरु खास करके कहे जातेथे ! और कहे जाते हैं ! जिसका कारण उन महात्माका यह ख्यालही नहींथा कि, अमुक हमारा भक्त श्रावक और अमुक नहीं ! बलकि वो इस वातको खूब जानतेथे कि, श्रावक वगैरह के ममत्वम जो कोइ फसता है या फसंगा उसको गुरुके बदले गिप्य बननेका समय आना है! या अवश्य आयगा! क्यों कि, जब किसीके