Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad

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Page 26
________________ २४ प्रस्ताव सातवां. (७) EF अपने साधुओंमें अवश्य लोच करनेका जैसा रिवाज है वैसे का वैसाही रखना, अगर चक्षु प्रमुख रोगादि. कारणसे, क्षुर मुंडन करवाना पड़े तो, गुरु आज्ञासे महीने महीने शास्त्रानुसार क्षुरमुंडन करवाना. लोकन, क्षुरमुंडन करवानेवालेने चार वा छै महीने तक केश न बढाने. . प्रस्ताव आठवां. (८) कितनेक गृहस्थी लोग उपाश्रयमें कपडा ले आते हैं और साधुओंको वोहराते हैं यह शास्त्र विरुद्ध है अतः अपने साधु गृहस्थीके मकान पर जाकर जरूरत हो उतना ले आवें किं तु, उपाश्रयमें लाया हुआ नहीं वेहरे (लेवें) * * इस प्रस्तावपर सभापतिजीकी आज्ञानुसार महाराज श्रीवल्लभविजयजीने श्रावक श्राविका वर्गको उद्देश करके कहाथाकि, शास्त्रोमें श्रावक श्राविकाको मातापिताकी उपमा दी है. जैसे मातापिता निजपुत्रको अहितसे रोक हितमें प्रे. रा करते हैं, ऐसे ही गामापिता तुल्य श्रावक वर्गको चाहिये कि, वो निजात्रके समान साधुकी अहितसे रक्षा कर उसके हितमें प्रवृत्ति करें. इस. लिये आपको दशानकारकी आज्ञानुसार जो आज्ञा सभाध्यक्षजी की तर्फसे सर्व साधुमंडलने स्वीकृत की है उसपर ध्यान देना चोग्य है. हां वस्त्रकी प्रार्थना करनी भापका धर्म है साधुको जरूरत होगी आपके मकानसे यथा योग्य गुर्वादिकी आनुसार ले आवेगा, परंनु, नुम लोक जो गठडे के गठडे ऊठा उपाश्रयमें लाकर सारी देते हो मेरा म्याल है कि, साधुओंको एक प्रकार की शिथिलतामें आप लोग मदद देते हो!

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