Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad

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Page 14
________________ १२ अपने साधुओंकी संख्या अन्य संघाडेके साधुओंसे अधिक है इससे जहां जहां जिन जिन स्थलोंमें साधुओंका जाना नहीं होनेसे हजारों जीव जैन धर्मसे पतित होते जाते हैं. ऐसे क्षेत्रोंमें विचरना. और उनको उपदेश देकर धर्ममें दृढ़ करना. यदि अपने साधु ऐसा मनमें विचार लेचे तो, थोडेही कालमें बहुत कुछ उपकार हो सकता हैं. बहुतसे साधु केवल बड़ेबड़े शहरों में ही विचरते हैं. इससे विचारे ग्रामांके भाविक जीव वर्षातक साधुओंके दर्शन और उपदेश विना तरसते रहते हैं. इससे अपने साधुओंको चाहिये कि, जहां अधिकतर धर्मकी उन्नति हो, वहां परही चतुर्मासादि करें ___ महाशयो ! मैंने आपका समय बहुत लिया है. परंतु अपने साधुओंका सम्मेलन होनेका पहलाही प्रसंग है. जिससे प्रथम आरंभमें मजबूत काम होना चाहिये. ताकि भविप्यमें यह अपना प्रथम संमेलन औरोंके लिये उदाहरण रूप हो जावे. अतः मैं आशा करता हूं कि, सब मुनिमंडल इस वातको लक्षमें रखकर इस कार्यमें सफलता प्राप्त करेगा. · अब मैं इतनाहीं कहकर अपने भापणको समाप्त करता हूं, सभापतिजीके व्याख्यानके बाद आपकी आज्ञासे जिस रीतिपर सम्मेलनका काम हुआ वह नीचे लिखा जाता है. प्रस्ताव पहला. अपने समुदायके प्रत्येक साधुको चाहिये कि, वर्तमान आचार्य महाराज जहां चतुर्मास करने के लिये कहें. वहां

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