Book Title: Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar

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Page 281
________________ ( २३८ ) भारती भास्वद्मानि भुङ्ग राज भवन भाजद् भवांभोदयः । सिष्ठन्त्यत्र सुरासुरेंद्र महित जैनं च सच्छासनं श्री मत्केशव सूरि सन्तति कृते सावरप्रभूयादिदम् ॥२१॥ इदम् चाक्षय धर्म साधनम् शासनम् श्री विदग्ध राजेन दत्तं ॥ सम्बत ९७३ श्री मंमट राजेन समर्थितम् सम्बत् ९९६ ॥ सूत्रधारोद्भव शत योगेश्वरेण उत्कीर्णे यम् प्रशस्तिरिति । जालोर । मारवाड़का यह भी बहुत प्राचीन स्थान है । इसका प्राचीन नाम जावालीपूर था । तोपखाना । ( 895) लक लक्ष्मी विपुल कुलगृहं धर्मवृक्षालवालं । श्री मन्ना भेय नाथ क्रम कमल युगं मंगलं व स्तनोतु । मन्ये मंगल्य माला प्रणत भव भूतां सिद्धि सौध प्रवेशे यस्य स्कंध प्रदेशे विलसति गल श्यामला कुंसलाली ॥१॥ श्री चाहुमान कुलांवर मृगांक श्री महाराज अणहिला न्वयोवद्भव श्री महाराज आल्हण सुत - irat दुर्ललित दलित रिपुवल श्री महाराजकीर्तिपाल हेव हृदयानं दिनंदन महाराज श्री समर सिंह देव कल्याण विजय राज्ये तत् पाद पद्मोपजीविनि निज प्रौढि मातिरेकतिरस्कृत सकल पील्वाहिका मंडल तस्कर व्यतिकरे । राज्यचिंतके जोजल राजपुत्रे इत्येवं काले प्रवर्त्तमाने । रिपुकुलकमले दुःपुण्यलावण्यपोत्रं नय विनय निधान' धाम सौंदर्य लक्ष्म्याः । धरणि तरुण नारी लोचनान' दकारी जयति- - समर सिंह क्ष्मा पतिः सिंह वृत्तिः ॥ २ तथा ॥ औत्पत्तिकी प्रमुख बुद्धि चतुष्टयेन निर्णीत भुप भवनोचित कार्यवृत्तिः । यन्नातुलः समभवत् किल जो जलाह्वो - -- खंडित दुरतं विपक्ष लक्षः ॥ ३ श्री चंद्रगच्छ मुख मंडन सुविहित यतितिलक सुगुरु श्री श्री चन्द्रसूरि चरण नलिन युगल दुर्ललित राजहंस श्री पूर्ण भद्र सूरि चरण कमल परि चरण चतुर मधुकरेण समस्त गोष्टिक समुदाय समन्वितेन श्री श्रीमाल वंश विभूषण श्रेष्ठि यशोदेव सुतेन सदाज्ञाकारि निज- सुयशोराज जगधर विधीयमान निखिल मनोरथेन श्रेष्ठि यशोवीर -----

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