Book Title: Chidkay Ki Aradhana
Author(s): Jaganmal Sethi
Publisher: Umradevi Jaganmal Sethi

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Page 49
________________ चिद्काय की आराधना/47 . 'मन क्रिया रहितोऽहम्' मन लोभी, मन लालची, मन चंचल मन चोर। मन के मते न चालिये, पलक-पलक मन ओर।। जैसे सिद्ध परमात्मा मन से रहित हैं, मन की क्रिया से रहित हैं, उसीप्रकार मेरा आत्मा भी निश्चय से मन से रहित हैं, मन की क्रिया से रहित है। हे आत्मन्! मन जड़ है, तुम चेतन हो; मन चंचल, तुम स्थिर शाश्वत; मन में आकुलता का वास है, तुम निराकुलता के स्वामी हो। मन में उठने वाला एक समय का एक विचार भी तुम्हारा नहीं, वह क्षणिक है; तो तुमसे अत्यन्त भिन्न मन तुम्हारा कैसे हो सकता है? __पंचेन्द्रियों के विषय नियत हैं, परन्तु मन का विषय अनियत है। मन से यह जीव कभी सुमेरु से सिद्ध लोक की ओर जाता है तो कभी सप्तम नरक से पाताल की सैर तक करता है। मन के अच्छे-बुरे विचारों से संसार बस गया है। हमारा मन माला में नहीं लगता है। इसका कारण क्या है? मन को प्रतिदिन नया कार्य चाहिए। ___अनेक भिन्न-भिन्न मंत्रों का जाप कीजिये। मन को काम चाहिए, काम मिलते ही आप के आधीन हो जायेगा। णमोकार मंत्र को श्वासोच्छास के साथ लयबद्ध पढ़िये। एक णमोकार मंत्र में तीन उच्छ्वास लीजिये। मन को चिद्काय से बाहर कहीं जाने का अवसर नहीं मिलेगा तो असंख्यात गुणी कर्म निर्जरा होगी। मन के आधीन क्यों बनते हो? वह तो जड़ है। मन के राजा बनो। .. ___ मन पर विजय प्राप्त करने के लिये नेत्र बन्द कर अपने उपयोग को अपने मन के स्थान पर लगायें। प्राप्त शरीर में विराजमान अपनी चिद्काय का ध्यान करें और अनन्त आनन्द स्वरूप मोक्ष को प्राप्त करें।

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